SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०४ नेमिनाथ चरित्र ___इस पूजासे प्रसन्न हो, तीसरे दिन रात्रिके समय सुस्थित नामक लवण समुद्रका अधिष्ठायक देवता उपस्थित हुआ। उसने कृष्णको पञ्च जन्य शंख दिया तथा बलरामको सुघोष नामक शंख और दिव्य रन, माला और वस्त्रादिक दिये । तदनन्तर उसने कृष्णसे कहा:"हे केशव! मैं सुस्थित नामक देव हूँ। आपने मुझे क्यों याद किया है आपका जो काम हो. वह शाघ्र ही बतलाइये, मैं करनेको तैयार हूँ। ___ इसपर कृष्णने कहा :-"प्राचीनकालमें यहाँ वासुदेवोंकी द्वारिका नामक जो नगरी थी और जो जलमें विलीन हो गयी थी, उसमें हमलोग बसना चाहते हैं, इसलिये आप उसे समुद्रगर्भसे बाहर निकाल दीजिये !" सुस्थित, तथास्तु . कह, वहाँसे इन्द्रके पास गया और उनसे यह समाचार निवेदन किया। सौधर्मेन्द्रकी आज्ञासे कुवेरने उसी समय वहाँ चारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी रत्नमयी द्वारिका नगरी निर्माण कर दी। उसके चारों ओर एक बड़ा भारी किला बनाया। साथही एक खण्डसे लेकर सात खण्ड तकके
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy