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________________ ४६८ नेमिनाथ चरित्र तेजीके साथ उसके मुखमें डाल दी कि उसका मुख गर्दन तक फट गया और उसी पीड़ाके कारण तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार कंसके उस दुर्दान्त गर्दभ और मेषको भी कृष्णने क्षणमात्रमें मारकर गोकुल और वृन्दावनको सदाके लिये उनके भयसे मुक्त कर दियो। इन सब बातोंका पता लगानेके लिये कंसके गुप्त. चरे सदैव चारों ओर विचरण किया करते थे। उन्होंने यथा समय कंसको इन सब घटनाओंकी सूचना दी। इससे कंसका सन्देह दूर हो गया और वह समझ गया, कि नन्दके यहाँ कृष्ण नामक जो बालक है, वही मेरा शत्रु है। फिर भी विशेष रूपसे इसकी परीक्षा करनेके लिये उसने एक उत्सवका आयोजन किया। यह पहले ही बतलाया जा चुका है कि उसके यहाँ शारंग नामक 'एक धनुष था, जिसकी सत्यभामा पूजा किया करती थी। उसने उस धनुषको राजसभामें स्थापित कराया और सत्यभामाको वहीं बैठकर उसकी पूजा करनेका आदेश दिया। इसके बाद उसने चारों ओर घोषणा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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