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________________ - बारहवाँ परिच्छेद ४६७ इस तरह ऐंठ दी, कि वह वहीं जमीन पर गिर पड़ा और उसकी जीवन लीला समाप्त हो गयी। अरिष्टकी इस मृत्युसे गोप गोपियोंको बड़ा ही आनन्द हुआ और वे देवताकी भाँति कृष्णकी पूजा करने लगे। कृष्ण पर अब तक उनका जो प्रेम था, वह इस घटनाके बाद दूना हो गया। इसके बाद एकदिन कृष्ण अपने इष्ट-मित्रोंके साथ बनमें क्रीड़ा कर रहे थे। इसी समय कंसका वह केशी नामक अव वहाँ आ पहुंचा। उसके बड़े बड़े दाँत, काल समान शरीर और भयंकर मुख देखकर सब लोग भयभीत हो गये। वह छोटे छोटे बछड़ोंको मुखसे काटने और गाय बैलोंको लातोंसे मारने लगा। कृष्णने उसे कई बार खदेड़ा, परन्तु वह किसी प्रकार भी वहाँसे, न गया। अन्तमें जब कृष्णने बहुत तर्जना की, तब वह मुख फैलाकर उन्हींको काटनेके लिये झपट पड़ा। उसके तीष्ण दाँतोंको देखकर सबको शंका हुई, कि अब वह कृष्णको ..कदापि जीता न छोड़ेगा, परन्तु उसके समीप आते ही कृष्णने अपनी वन समान भुजा इतनी
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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