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________________ आठवाँ परिच्छेद ३५७ - इसके बाद रानीने उनसे अनुरोध किया कि किसी चतुर 'दूतको भेजकर चारों ओर उनकी खोज करानी चाहिये। राजा भीमरथने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। . दूसरे ही दिन उन्होंने इस कार्यके लिये हरिमित्र नामक एक पुरोहितको चुन लिया और उसे सब मामला समझा कर नल दमयन्तीकी खोज करनेके लिये रवाना किया । वह सर्वत्र उनकीखोज करता हुआ क्रमशः अचलपुरमें पहुँचा और वहींके राजा ऋतुपर्णसे भेट की । जिस समय उन दोनोंमें बात चीत हो रही थी, उसी समय वहाँ रानी चन्द्रयशा जा पहुंची। उन्हें जब यह मालूम हुआ, कि यह आदमी राजा भीमरथके यहाँसे आया है तब उन्होंने अपनी वहिन पुष्पदन्ती आदिका कुशल समाचार पूछा । उत्तरमें हरिमित्रने कहा :- "हे देवि ! रानी पुष्पदन्ती और राजा भीमरथ तो परम प्रसन्न हैं, किन्तु नल-दमयन्तीका समाचार बहुत ही शोचनीय है।" चन्द्रयशाने कहा:-हे पुरोहित ! तुम यह क्या कह रहे हो ? नल और दमयन्तीको क्या हो गया है ? उनका जो कुछ समाचार हो, शीघ्र ही कहो।"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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