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________________ आठवा परिच्छेदः लिये यह दुःखितावस्थामें भूमिपर लेट रही है। लेकिन पंक लग जानेपर भी कमलिनी तो सदा कमलिनी हो दमयन्ती चिन्तामन थी, साथ ही उसे कुछ निद्रा भी आ गयी थी, इसलिये दासियोंकी इन बातोंकी ओर उसका ध्यान भी आकर्षित न हुआ। वे सब जल भरकर राजमन्दिरको वापस चली गयीं। वहां उन्होंने रानीसे उसकी चर्चा की। इसलिये रानीने कहा :-"अच्छा, तुम जाओ और उसे मेरे पास लिया लाओ। मैं उसे अपनी पुत्री चन्द्रवतीकी बहिन , बनाकर अपने पास रख लूंगी।" रानीकी यह बात सुनकर उसकी कई दासियाँ दमयन्तीके पास गयीं और कहने लगी :- "हे सुभगे ! इस नगरकी रानी चन्द्रयशाने तुम्हें आदरपूर्वक अपने ‘पास बुलाया है। वे तुम्हें अपनी पुत्रीके समान रक्खेंगी और तुम्हें किसी प्रकारका कष्ट न होने देंगी। और न्यहाँपर पड़े रहनेसे तो तुम्हारे शरीरमें भूत-प्रेत प्रवेश कर तुम्हें सतायगे। इसलिये हे भद्र ! तुम हमारे साथ
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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