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________________ आठनों परिच्छेद दिया। तदनन्तर दमयन्ती पञ्च परमेष्ठीका स्मरण करती हुई उसी शैय्या पर लेट रही और गहरी थकावटके कारण उसे शीघ्र ही निद्रा आ गयी। दमयन्तीके सोजानेपर, दैव दुर्विपाकसे नलके हृदयमें एक विचारका उदय हुआ । वे अपने मनमें कहने लगे:"ससुराल जाकर रहना बहुत ही बुरा है, परले दरजेकी नीचता है। उत्तम पुरुप कदापि ऐसा नहीं करते। मुझे भी यह विचार छोड़ देना चाहिये। वहाँ जाकर रहनेसे मेरा अपमान होगा, मेरी मर्यादा नष्ट हो जायगी। इसलिये वहाँ जाना ठीक नहीं। किन्तु दमयन्ती मेरे इस प्रस्तावसे शायद सहमत न होगी। उसे अपने पिताके यहाँ सुख मिलनेकी आशा है, इसलिये वह तो वहीं चलने पर जोर देगी। वह वहॉपर सुखी भी हो सकती है, चाहे तो वहाँ सहर्ष जा सकती है, मैं उसे रोकना भी नहीं चाहता, किन्तु मैं वहाँ क्यों जाऊँ ?" नल वड़ी चिन्तामें पड़ गये। दमयन्ती उनके साथ थी। वह अपने मायके जाना चाहती थी, किन्तु नलको इसमें अपमान दिखायी देता था, इसीलिये वे असमंजसमें
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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