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________________ २०२ नेमिनाथ-चरित्र दुःखी मनुष्यको निद्रामें ही थोड़ीसी शान्ति मिल सकती है।" - दमयन्तीने कहा :-'हे देव ! मुझे मालूम होता है मानो पश्चिम ओर कोई हिंसक प्राणी छिपा हुआ है। देखिये, गायें भी कान खड़े किये उसी ओरको देख रही हैं। यदि हमलोग यहाँसे कुछ आगे चलकर ठहरें तो बहुत अच्छा हो।" ____ नलने कहा :-"प्रिये ! तुम बहुत ही डरपोक हो, इसलिये ऐसा कहती हो। यहाँसे आगे बढ़ना ठीक नहीं। आगे तपस्वियोंके आश्रम हैं। वे सब मिथ्या दृष्टि हैं। उनके संगसे सम्यक्त्व उसी प्रकार नष्ट हो जाता है, जिस प्रकार खटाई पड़नेके कारण दूध अपनी स्वाभाविक गन्ध और स्वादसे रहित वन जाता है। विश्रामके लिये इस समय यही स्थान सबसे अच्छा है। तुम निश्चिन्त होकर सो रहो। यदि तुम्हें भय मालूम होता है, तो मैं अंगरक्षककी भॉति सारी रात पहरा दूंगा।" पतिदेवके यह वचन सुनकर दमयन्ती निश्चिन्त हो गयी। नलने उसकी शैय्यापर अपना अर्घवस्त्र चिछा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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