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________________ नेमिनाथ- चरित्र यथासमय दिव्य वस्त्रालङ्कारोंसे सज्जित, हाथमें पुष्पोंकी जयमाल लिये हुए, सखियोंसे घिरी हुई कनकवतीने राज हॅसिनीकी भाँति मन्दगतिसे स्वयंवरके मण्डपमें पदार्पण किया | पदार्पण करते ही चारों ओरसे सौ-सौ दृष्टियाँ एक साथ ही उस पर जा पड़ी। एकवार कनकवतीने भी आँख उठाकर चारों ओर देखा । उसकी दृष्टि उन राजा 1 महाराजा और राजकुमारोंके समूहमें वसुदेव कुमारको खोज रही थी । उसने उन्हें चित्र और दूतके वेशमें देखा था, इसलिये वह उन्हें भली भाँति पहचानती थी, किन्तु आज स्वयंवर सण्डपमें वे उसे दिखायी न देते थे । अतः उसने चञ्चल नेत्रों द्वारा वह स्थान दो तीन बार देख डाला, किन्तु कहीं भी उनका पता न चला। इससे उसका मुख- कमल मुरझा गया और उसके चेहरे पर विषादकी श्याम छाया स्पष्ट रूपसे दिखायी देने लगी । वह इस प्रकार उदास हो गयी, मानो किसीने उसका सर्वस्व छीन लिया हो । मण्डपमें अन्यान्य राजे महाराजे पर्याप्त संख्या में उपस्थित थे, किन्तु उसने उनकी ओर आँख उठाकर देखा भी नहीं। इससे चिन्ता उत्पन्न हों २५० ·
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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