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________________ सातवाँ परिच्छक २४९ ओरसे उनपर चमर ढाल रही थीं, दूसरी ओर बन्दीजनों का दल उनका गुणकीर्तन करता हुआ उनके आगे-आगे चल रहा था। कुवेर हॅस पर सवार थे और उनके पीछेपीछे अन्यान्य देवताओंका दल चलता था। ___ जिस समय कुवेर अपने दलबलके साथ सभा-मण्डपमें पहुंचे, उस समय सारा मण्डप जग मगा उठा । देव और देवाङ्गनाओंसे घिरे हुए कुबेरकी उपस्थितिके कारण वहाँपर साक्षात् स्वर्गका दृश्य उपस्थित हो गया। ___कुवेर और वसुदेवके आसन ग्रहण करने पर अन्यान्य राजा तथा विद्याधरोंने भी अपना-अपना आसन ग्रहण किया । इसी समय कुबेरने वसुदेवको कुवेर-कान्ता नामक एक अंगूठी पहननेको दी। वह अंगूठी अर्जुन सुवर्णकी बनी हुई थी और उसपर कुवेरका नाम लिखा हुआ था। उसे कनिष्ठिका उंगलीमें पहनते ही वसुदेव भी कुबेरके समान दिखायी देने लगे। यह एक बड़े ही आश्चर्यका विषय बन गया। सब लोग कहने लगे-~"अहो ! कुबेर यहाँपर दो रूप धारण कर पधारे हैं।" चारों ओर बड़ी देर तक इसीकी चर्चा होती रही। . ..
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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