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________________ सातवा परिच्छेद २२० ___ कुछ दिनके बाद रानीने एक सुन्दर पुत्रीको जन्म दिया। वह रूपमें साक्षात् लक्ष्मीके समान थी, इसलिये उसके माता-पिता उसे देखकर बहुत ही आनन्दित हुए । उसके पूर्वजन्मके पति कुवेरने उस समय प्रसन्नतापूर्वक सुवर्णकी वृष्टि की, इसलिये उत्तका नाम कनकवतीरक्खा गया । उसके लालन-पालनके लिये कई धात्रियाँ नियुक्त कर दी गयी। जब कनकवती धीरे-धीरे बड़ी हुई तब राजाने शीघ्र ही उसकी शिक्षा-दीक्षाका प्रबन्ध किया। उसकी बुद्धि बहुत ही तीन थी, इसलिये उसने थोड़े ही दिनोंमें अनेक विद्या-कला तथा व्याकरण, न्याय, छन्द, अलंकार और काव्यादिक शास्त्रोंमें निपुणता प्राप्त कर ली। वाणीमें तो वह मानो साक्षात् सरस्वती ही थी। गायन-वादन तथा अन्यान्य कलाओंमें भी वह अपना सानी न रखती थी। कनकवतीने क्रमशः किशोरावस्था अतिक्रमण कर युवावस्थामें पदार्पण किया। राजा हरिश्चन्द्रको अब उसके 'व्याहकीफिक हुई। इसलिये उन्होंने उसके अनुरूप वरकी बहुत खोज कर ली। किन्तु वे जैसा चाहते थे, वैसा वर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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