SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०५. छठा परिच्छेद यह सुनकर वसुदेवने कहा :-"हे सुन्दरि ! क्या तुम मुझे वेगवती विद्या दे सकती हो? मुझे उसकी आवश्यकता है।" ___वालचन्द्राने सहर्ष वह चिद्या वसुदेवको दे दी। इसके बाद वह गगनवल्लभपुरको चली गयी और वसुदेव अपने वासस्थान-तापस आश्रमको लौट आये। वहाँ आनेपर वसुदेवने दो राजाओंको देखा, जिन्होंने उसी समय व्रत ग्रहण किया था और जो अपने पौरुषकी निन्दा कर रहे थे। उनसे उद्वेगका कारण पूछनेपर उन्होंने वसुदेवसे कहा: श्रावस्ती नगरीमें एणीचुन्न नामक एक राजा है, जो बहुत ही पवित्रात्मा है। उसने अपनी पुत्री प्रियंगुमञ्जरी के स्वयंवरके लिये अनेक राजाओंको निमन्त्रित किया था, परन्तु उसकी पुत्रीने उनमेंसे किसीको भी पसन्द न किया। इससे उन राजाओंने रुष्ट होकर युद्ध करना आरम्भ किया परन्तु प्रियंगुमंजरीके पिता एणीपुत्रने अकेले ही सबको पराजित कर दिया। उनके भयसे न जाने कितने राजा भाग गये, न जाने कितने पर्वतोंमें जा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy