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________________ २०४ M नेमिनाथ-चरित्र उसके वंशवालोंको भी इन विद्याओंसे वंचित रहना पड़ेगा । हाँ, यदि उन्हें किसी साधु या महापुरुषके दर्शन हो जायेंगे, तो उसके प्रभावसे यह अभिशाप नष्ट हो जायगा और उस अवस्थामें वे इन विद्याओंको प्राप्त कर सकेंगे।" ___इतना कह धरणेन्द्र अपने वासस्थानको चले गये । विद्युदंष्ट्रके वंशमें आगे चलकर केतुमती नामक एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसका ब्याह पुंडरीक वासुदेवके साथ हुआ। उसने विद्याएँ सिद्ध करनेके लिये बड़ी चेष्टा की, किन्तु धरणेन्द्रकै अभिशापसे कोई फल न हुआ। उसी 'वंशमें मेरा जन्म हुआ और मैंने भी विद्याएँ सिद्ध करने के लिये बड़ा उद्योग किया। किन्तु यदि सौभाग्य वश आपके दर्शन न मिलते, तो मेरा भी वह उद्योग कदापि सफल न होता। मेरा नाम बालचन्द्रा है । आपकी ही कृपासे मेरी विद्या सिद्ध हुई है, इसलिये मैं आपसे व्याहकर सदाके लिये आपकी दासी बनना चाहती हूँ। इसके अलावा आप मुझसे जो माँगें, वह भी मैं देनेके लिये तैयार हूँ।"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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