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________________ छठा परिच्छेद . १९७ लिये वह इसी समय मदनवेगाका रूप धारण कर वहाँ आ पहुँची और मन्त्रबलसे मकान में आग लगा कर वसुदेवको हरण कर ले गयी । उसने उन्हें मार डालनेकी: इच्छासे आकाशमें खूब ऊँचे ले जाकर वहाँसे उन्हें छोड़ दिया, किन्तु जिसपर भगवानकी दया होती है, उसे कौन मार सकता है ? वसुदेव राजगृहके निकट घासकी एक ढेरी पर आ गिरे, जिससे उनका बाल भी बाँका न हुआ । आसपास के लोगों के मुँहसे जरासन्धका नाम सुनकर चसुदेव समझ गये कि यह राजगृह है । वे वहाँसे उठकर जुवारियोंके एक अड्ड में गये और वहाँ चातकी वातमें एक करोड़ रुपये जीतकर उन्होंने वह धन याचकोंको दान दे दिया । उनका यह कार्य देखकर राज-कर्मचारियोंने उन्हें बन्दी बनाकर, राजाके पास ले जानेकी तैयारी की । यह देख, वसुदेवने कहा :- "भाई ! मैंने तो कोई अपराध किया ही नहीं है, फिर तुम लोग मुझे क्यों कैद कर रहे हो ?” } राज- कर्मचारियोंने कहा :- "एक ज्ञानीने हमारे राजा जरासन्ध को बतलाया है, कि प्रातः कालमें करोड़ कृपये जीतकर जो याचकोंको दान देगा, उसीके पुत्र द्वारा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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