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________________ Mew १९६ नेमिनाथ चरित्र दिया। इसके बाद दिवस्तिलक नगरमें जाकर उन्होंने अपने श्वसुरको बन्धन मुक्त किया। वहाँसे विजयका डंका बजाते हुए वे अमृतधारा लौट आये। वहाँपर और भी कई दिनोंतक उन्होंने निवास किया। इस बीच मदनवेगाने एक सुन्दर पुत्रको जन्म दिया। उसका नाम अनावृष्टि रक्सा गया वसुदेवके रूप और गुणोंपर समस्त विद्याधर और विद्याधरियाँ मुग्ध रहा करती थीं। वे जिधर निकलते, उधर ही लोगोंकी आँखे उनपर गड़ जाया करती थीं। एकबार उन्होंने सिद्धायतनकी यात्रा की, वहाँसे वापस आने पर उन्होंने एकदिन मदनवेगाको अपने पास बुलाया, किन्तु भूलसे मदनवेगाके बदले उनके मुखसे कहीं वेगवतीका नाम निकल गया। इससे मदनवेगा संट होकर अपने शयनागारमें चली गयी, क्योंकि स्त्रियाँ स्वभावसे ही सौतका नाम सुनना पसन्द नहीं करतीं। खैर, वसुदेवने इसपर कोई ध्यान भी न दिया। परन्तु त्रिशिखरकी पत्नी सूर्पणखा वसुदेवसे अपने पतिका बदला चुकानेके लिये व्याकुल हो रही थी। इस
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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