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________________ • १८८ नेमिनाथं चरित्र कुरुदेशमें जा पहुँची । वहाँपर दो केवलियोंसे मेरी भेट हो गयी। मैंने उनसे पूछा :- "हे भगवन् ! क्या आप बतला सकते हैं कि मेरा पति स्वर्गसे च्युत होकर कहाँ उत्पन्न हुआ है ?" केवलीने कहा :- " तुम्हारे पतिने हरिवंशके राजा के यहाँ जन्म लिया है। तुम भी देवलोकसे च्युत होकर एक राजपुत्रीके रूपमें जन्म लोगी । तुम्हारे नगर में एक बार इन्द्र-महोत्सव होगा, उसमें हाथीके आक्रमणसे तुम्हें बचाकर फिर वही तुम्हारा पाणिग्रहण करेगा ।" केवलीके यह वचन सुनकर मैं आनन्दपूर्वक उन्हें वन्दनकर अपने वासस्थानको चली गयी। इसके बाद स्वर्गसे च्युत होकर मैं सोमदत्त राजाके यहाँ पुत्री रूपमें उत्पन्न हुई हूँ । पहले यह सव वातें मुझे मालूम न थीं, किन्तु सर्वाण साधुके केवल महोत्सव में देवताओं को देखकर मुझे जातिस्मरण- ज्ञान उत्पन्न हुआ और यह सब बातें मुझे ज्ञात हो गयीं । यही कारण है कि मैंने अब स्वयंचरका विचार छोड़कर विवाह सम्बन्धमें मौनाचलम्बन "कर लिया है ।" 1
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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