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________________ १४७ छठी परिच्छेद वहाँ और पहुँचा। उसने वसुदेवको प्रणाम कर नम्रतापूर्वक कहा है कुमार यह तो आप जानते ही होंगे, कि हमारे राजाके सोमश्री नामक एक कन्या है। पहले उसने स्वयंवर द्वारा अपना विवाह स्थिर किया था। परन्तु बीचमें सर्वाण साधुके केवल ज्ञान महोत्सवमें पधारे हुए देवताओंको देखकर जातिस्मरण-ज्ञान उत्पन्न हो गया और तबसे अपना वह विचार छोड़कर उसने मौनावलम्बन कर लिया है। उसकी, यह अवस्था देखकर हमारे महाराज बहुत चिन्तित हो उठे, किन्तु मैं उन्हें सान्त्वना दें, एक दिन राजकुमारीसे एकान्तमें मिला। राजकुमारी मुझे पिताके समान ही: आदरकी दृष्टिसे देखती है। उसने मुझसे बतलाया कि:- पूर्वजन्ममें मेरा पति एक देव था। और देवलोकमें हम दोनोंके दिन बड़े, आनन्दमें कटते थी. एक दिन हमलोग अहिरन्तका जन्म-महोत्सव देखने के लिये नन्दीश्वरादिककी यात्रा करने गये । वहाँसे वापस आने पर मेरा बह पति देवलोकसे च्युत हो गया। . इससे मैं शोकविह्वल हो, उसे खोजती हुई भरतक्षेत्र के
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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