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________________ १५६ नेमिनाथ चरित्र मांसके धोखे सुवर्णभूमिमें उठा ले जायेंगे। वहाँ पहुँचनेका यही तरीका है और इसी तरीकेसे सब लोग काम लेते हैं।" ___बकरोंको मारनेकी बात सुनकर मेरा तो कलेजा ही काँप उठा। मैंने कहा :- "इन बेचारोंने हमलगोंको कठिन मार्ग पार करनेमें अमूल्य सहायता दी है। मुझे तो यह बन्धु समान प्रिय मालूम देते हैं। क्या इन्हें मारना उचित होगा?" ____ मेरी यह बात सुनकर रुद्रदत्तको क्रोध आ गया। उसने मुझे झिड़क कर कहा :--"इन्हें मारे बिना हमलोग आगे नहीं बढ़ सकते। उस हालतमें हमें यहीं प्राण दे देना होगा। मैं इसके लिये तैयार नहीं हूँ। अपना प्राण बचानेके लिये इनका प्राण लेना ही होगा।" इतना कह उसने अपने बकरेको उसी क्षण मार डाला। उसकी यह अवस्था देखकर मेरा बकरा दीन और कातर दृष्टिसे मेरी ओर ताकने लगा। मैंने उससे कहा:- मैं तेरी रक्षा करनेमें असमर्थ हूँ, इसलिये
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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