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________________ छठा परिच्छंद्र हमारे साथ यहाँ घूमने आया और मुझे इस वृक्षसे जकड़ कर मेरी प्रियतमाको उठा ले गया। सैर, अब जो कुछ होगा, देखा जायगा। इस समय तो आपने मुझ पर उपकार कर मेरा प्राण बचाया है, इसलिये बतलाइये कि मैं आपकी क्या सेवा का ? आपके इस उपकारमा क्या बदला हूँ?" मैंने कहा :-'हे अमितगति ! मैंने किसी बदलेकी आशासे यह उपकार नहीं किया। तुम्हें ऐसी अवस्था में सहायता करना मैंने अपना कर्त्तव्य समझा । मैं तुम्हारे दर्शनसे ही अपने को कृतकृत्य मानता हूँ।" ___ मेरे यह वचन सुनकर वह विद्याधर अपने वासस्थान को चला गया और मैं इस घटना पर विचार करता हुआ अपने घर लौट आया। ___ यह उस समयकी बात है, जिस समय में किशोरावस्था अतिक्रमण कर रहा था। धीरे-धीरे जब मैंने यौवन की सीमामें पदार्पण किया, तव मेरे पिताने मेरे सर्वार्थ नामक मामाकी मित्रवती नामक कल्यासे मेरा विवाह कर दिया। परन्तु उन दिनों मैं कलाओंके पीछे १०
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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