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________________ भाषानुवादसहिता ६३ अविद्या अथवा उसके कार्योंसे न कभी हुआ, न है और न होगा। क्योंकि वह अविनाशी - ज्ञान स्वरूप है । दृश्यानुरक्तं तद्द्द्रष्ड्ड दृश्यं द्रष्ट्रनुरञ्जितम् । योभयं रक्तं तन्नाशेऽद्वैतमात्मनः ॥ ५३ ॥ शब्दादि दृश्य विषयोंसे सम्बद्ध होकर अन्तःकरण उनका द्रष्टा होता है और अन्त:करण द्रष्टा ग्रनुरञ्जित (संमिलित ) होकर चैतन्यका दृश्य अर्थात् उससे भासित होता है । इस प्रकार ग्रहङ्कारसे द्रष्टा और दृश्य दोनोंका सम्बन्ध है । इसलिए अहङ्कारका नाश होनेसे आत्माकी श्रद्वैतावस्था ( अपने आप ) सिद्ध होती है ॥ ५३ ॥ te केचिचोदयन्ति योऽयमन्वयव्यतिरेकाभ्यामनात्मतयोत्सारितोऽहङ्कारो वाक्यार्थप्रतिपत्तये, सोऽयं विपरीतार्थः संवृत्तो यस्मादहं ब्रह्मास्मीति ब्रह्माहंपदार्थयोः सामानाधिकरण्यश्रवणात् श्रनात्मार्थेन सामानाधिकरण्यं प्राप्नोति । वक्तव्या च प्रत्यगात्मनि वृत्तिः, सोच्यते प्रसिद्धलक्षणा गुणवृत्तिभिः । इसपर कोई लोग यह शङ्का करते हैं कि जो यह ग्रन्वयव्यतिरेक द्वारा 'तत्त्वमसि' इत्यादि वाक्योंके अर्थज्ञानके लिए ग्रहङ्कारको अनात्मा ठहराकर उसे पृथक् कर दिया है, सो यह विपरीत हो गया है । क्योंकि 'अहं ब्रह्मास्मि' इस श्रुतिमें ब्रह्म और ग्रहकारका भेद प्रतिपादन किया है, परन्तु आत्मा के साथ तो अनात्माका अभेद नहीं हो सकता है । इसलिए ग्रहं शब्दकी प्रत्यगात्मा में वृत्ति कहनी चाहिए । अर्थात् श्रहंशब्द आत्माका किस वृत्ति ( शक्ति अथवा लक्षणा ) से बोधक होता है, यह बतलाना चाहिए | वही कहते हैं - अहं शब्द मुख्य - वृत्ति ( शक्ति ), लक्षणा - वृत्ति और गौणी - वृत्ति आत्माका बोधक है । 1 प्रथम लक्षणावृत्तिसे शब्द किस प्रकार आत्माका वाचक है, यह बतलाते हैंनाऽज्ञासिषमिति प्राह सुषुप्तादुत्थितोऽपि हि । योदाहादिवत्तेन लक्षणं परमात्मनः ॥ ५४ ॥ मनुष्य सोकर उठने पर मैं इतनी देर तक कुछ नहीं जानता था, ऐसा कहता है । ऐसे स्थलों में अहङ्कार - रहित केवल ग्रात्मामें भी ग्रह शब्दका प्रयोग होता है । इसलिए जिस प्रकार 'लोहा जलाता है' इत्यादि प्रयोग - स्थलोंमें लोहे में जलाना न बन मकने के कारण, लोहा इस शब्दका अनितप्त लोहा, ऐसा अर्थ लक्षणावृत्ति से किया जाता है । इसी प्रकार 'ग्रहं ब्रह्मास्मि' यहाँ भी दृश्यभूत अहङ्कारकी कभी निर्गुण ब्रह्मसे
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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