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________________ नैष्कर्म्यसिद्धिः बोधक वेदान्त वाक्य भी उक्त ऐकात्म्यमें प्रमाण हैं। क्योंकि अज्ञात वस्तुका ज्ञापन कराना दोनोंमें समान ही है । इसलिए यह कहते हैं अधिचोदन'मानायस्तस्यैव स्याक्रियार्थता । तत्वमस्यादिवाक्यानां ब्रूत कर्मार्थता कथम् ।। ९१ ॥ विधि-प्रकरण में पढ़े हुए निष्फल अर्थवादादि वाक्य ही ( विधिके अनुरोधसे ) क्रियापरक होते हैं। परन्तु 'तत्त्वमसि' श्रादि वाक्य, जब कि वे विधिके प्रकरण में नहीं हैं और सार्थक हैं, किस प्रकार क्रियापरक हो सकते हैं, यह अाप ही कहिए ? ।। ६१ ॥ अपि च, एकात्म्यपक्ष इवाऽदृष्टार्थकर्मसु भवत्पक्षेऽपि प्रवृत्तिदुलक्ष्या । यतः । स्वर्ग यियासुर्जुहुयादग्निहोत्रं यथाविधि । देहाव्युत्थापितस्यैवं कर्तुत्वं जैमिनेः कथम् ।। ९२ ॥ और आपके पक्षमें भी तो जीवब्रह्मकी एकता के समान ही अदृष्ट फलवाले कमें में प्रवृत्ति होनी कठिन है। क्योंकि "स्वर्गको जाने की इच्छा करनेवाला पुरुप यथाविधि अग्निहोत्रका अनुष्ठान करे" इस विधिके द्वारा देहसे भिन्न ज्ञात हुए अात्मामें जैमिनिजीके मतमें कर्तृत्व किस प्रकार सिद्ध हो सकता है ? क्योंकि देहादिसे अतिरिक्त निरवयव आत्मामें क्रियाके न होनेसे कर्तृत्व नहीं है। तथा प्रयत्न भी अन्तःकरणका धर्म होनेसे अात्माका गुण नहीं है ॥६२ ॥ . न च प्रत्याख्याताशेषशरीरादिकर्मसाधनस्त्रमावस्याऽऽत्ममात्रस्य कमस्वधिकारः । यस्मात् सर्वप्रमाणासम्भाव्यो ह्यवृत्त्येकसाधनः । . युष्मदर्थमनादित्सुजैमिनिः प्रयत कथम् ।। ९३ ।। समस्त शरीरादि साधनोंका त्याग कर देना ही जिसका स्वभाव है । अतएव जिसमें किसी धर्मका समावेश नहीं है। क्योंकि, जो सच प्रमाणोंका अगोचर, अहंकारवृत्तिमें अभिव्यक्त होनेवाला तथा अहंकारादि अनात्म वस्तुओंसे असंस्पृष्ट है; वह जैमिनिजीके शरीरमें रहनेवाला अात्मा विधिसे कैसे प्रेरित हो सकता है ? ॥ ६३ ॥ प्रवृत्तिकारणाभावाच । यस्मात् । - १-अधिचोदनं य आम्नायः, भी पाठ है। २-अहंवृत्त्यैकसाधनः, भी पाठ है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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