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________________ भाषानुवादसहिता ४१ भी परलोकमें ही फलदायक है, सो वह भी विधि के बिना नहीं माना जा सकता।" यह भी बिना विचारे ही कहा जान पड़ता है। क्योंकि चिरकाल बीतनेपर फल देनेवाले कर्मों में यह नियम हो सकता है। परन्तु उत्पन्न होते ही फल देनेवाले आत्मज्ञानके विषयमें यह कदापि नहीं हो सकता । यही बात अग्रिम श्लोकसे कहते हैं ज्ञानात्फले ह्यवाप्तेऽस्मिन् प्रत्यक्ष भवघातिनि । उपकाराय तन्नेति तन्न्याय्यं भाति नो बचः ॥ ९० ॥ जब ज्ञानसे समस्त संसारको नष्ट करनेवाला कैवल्यरूप फल प्रत्यक्षमें होते देखा जाता है, तो फिर अापका यह कथन कि 'विधिके बिना आत्मज्ञान फलदायक नहीं होगा' प्रत्यक्ष विरुद्ध होनेके कारण सर्वथा असङ्गत है ॥ ६० ॥ यदपि जैमिनीयं वचनमुद्घाटयसि तदपि तद्विवक्षापरिजानादेवोद्भाव्यते । किं कारणम् ? यतो न जैमिनेरयमभिप्राय आम्नायः सर्व एव क्रियार्थ इति । यदि ह्ययमभिप्रायोऽभविष्यदथाऽतो ब्रह्मजिज्ञासा, जन्माद्यस्य यतः, इत्येवमादिब्रह्मवस्तुस्वरूपमात्रयाथात्म्यप्रकाशनपरं गम्भीरन्यायसंहब्धं सर्ववेदान्तार्थमीमांसनं श्रीमच्छारीरक नाऽसूत्रयिप्यत् । अस्त्रयच्च । तस्माज्जैमिनेरेवाऽयमभिप्रायो गम्यते यथैव विधिवाक्यानां स्वार्थमात्रे प्रामाण्यमेवमैकात्म्यवाक्यानामप्यनधिगतवस्तुपरिच्छेद-साम्यादिति । अत इदमभिधीयते । और जो आप जैमिनिजीके वचनका प्रमाण देते हो वह भी उनके वचनके अाशयको न समझ कर ही। क्योंकि जैमिनिका यह अभिप्राय ही नहीं है कि सम्पूर्ण वेद कर्मके ही प्रतिपादक हैं। यदि उनका यही अभिप्राय होता तो 'साधनचतुष्टय सम्पन्न अधिकारी पुरुषको ब्रह्मकी जिज्ञासा करनी चाहिए' और 'जिससे जगत्की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होते हैं वह ब्रह्म है' इत्यादि ब्रह्मवस्तुके यथार्थस्वरूपको प्रकाशित करने में उपयोगी, गम्भीर-युक्तियोंसे परिपूर्ण तथा समस्त वेदान्तवाक्योंकी मीमांसा करनेवाले शारीरकसूत्रकी रचना महर्षि व्यास न करते । परन्तु रचना तो की है । इसलिए महर्षि जैमिनिजीका यही अभिप्राय प्रतीत होता है कि जैसे विधिवाक्योंका उनके बोधित किए हुए अर्थमें प्रामाण्य है, इसी प्रकार जीव-ब्रह्मकी एकताके १-न न्याय्यं भाति नो वचः, ऐसा भी पाठ है। २-उद्घाटयते, ऐसा भी पाठ है। ३-असूत्रयच्च तत्, भी पाठ है । भगवान् बादरायण इति शेषः । ४-परिच्छेदसामर्थ्यात्, भी पाठ है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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