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________________ ३२ . नैष्कयसिद्धिः जिनके सिद्धान्तमें जीवात्माका ब्रह्मके साथ भेदाभेद (अर्थात् सत्त्व, चैतन्य, विभुत्व आदि साधर्म्यसे अभेद और अल्पज्ञत्व, कर्मफलभोक्तत्व प्रादि वैधयंसे भेद) माना जाता है, उनको भी केवल अद्वैतज्ञानसे मोक्ष न मानकर "मैं ब्रह्मरूप हूँ" इस आत्मरूपताके अनुकूल भावनाकी (जिसको उपासना कहते हैं ) मोक्षकी प्राप्ति के लिए विधि माननी पड़ेगी। इस अात्मस्वभावानुकूल 'मैं ब्रह्म हूँ' इस प्रकारकी भावनासे बेचारे दुःखी द्वैतवादी लोग भी मुक्त हो जायँगे । परन्तु अात्मस्वरूपके विरुद्ध काँसे नहीं ॥ २॥ इतरस्मिस्तु पक्षे विधेरेवाऽनवकाशत्वम् । कथम् ? और जिस मतमें जीव और ब्रह्मका सर्वथा अभेद ही है, उस पक्षमें तो उपासना-विधि के लिए भी अवकाश नहीं है। क्योंकि--- समस्तव्यस्तभूतस्य ब्रह्मण्येवाऽवतिष्ठतः । बत कर्माणि को हेतुः सर्वानन्यत्वदर्शिनः ॥ ७३ ॥ __ जो समस्त कर्म करनेवाले में से पृथक् हो गया है, अथवा जो समष्टि-व्यष्टिरूप हा है तथा जो केवल ब्रह्म में ही स्थित है, उस-सब पदाथोंके साथ अभेदको जाननेवाले-~-पुरुषको श्राप ही कहिए, कर्ममें कौन प्रवृत्त कर सकता है ? ।। ७३ ।। . सर्वकर्मनिमित्तसंभवाऽसंभवाभ्यां सर्वधर्मसङ्करश्च प्राप्नोति । यस्मात् अभेदपक्षमें ब्रह्मज्ञानीकी कर्ममें प्रवृत्ति मान ली जाय तो. उसकी प्रवृत्तिमें काका सङ्कर हो जाएगा। क्योंकि सर्वजात्यादिमत्त्वेऽस्य नितरां हेत्वसम्भवः । विशेषं हयनुपादाय कर्म नैव प्रवर्तते ।। ७५ ॥ ब्रह्मज्ञानी पुरुष तो सर्वात्मक ब्रह्म के साथ एकीभूत होने के कारण सभी जातियोंसे युक्त हुआ है। इस कारण ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य, इनमें से किसी एकके ही कर्ममें इसकी प्रवृत्ति होनेका कोई कारण नहीं है । और बिना 'मैं ब्रह्मण हूँ, या 'क्षत्रिय हूँ इत्यादि विशेषके समझे कर्ममें प्रवृत्ति नहीं हो सकती और उसको यह विशेष ज्ञान रहता नहीं। इस कारण उसकी किसी कर्ममें प्रवृत्ति नहीं होती ॥ ७४ ॥ स्याद्विधिरध्यात्माभिमानादिति चेन्नैवम् । यस्मात्-- न चाध्यात्माऽभिमानोऽपि विदुषोऽस्त्यासुरत्वतः । विदुषोऽप्यासुरश्चेत्स्यानिष्फलं ब्रह्मदर्शनम् ॥ ७५ ॥ शङ्कायद्यपि ब्रह्मज्ञानीका सर्वात्मक ब्रह्म के साथ अभेद है, तथापि ब्राहाण,
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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