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________________ १२६ विषय श्लोक प्रसंख्यान विधिके अस्वीकारमें दोषकी आशङ्का और उसका समाधान ... ... ... ... चतुर्थ अध्याय पुनरुक्तिका परिहार ... आत्मासे ही अनात्माकी सिद्धि देहेन्द्रियादिमें आत्मसंशय वाक्य द्वारा ही आत्माका ज्ञान होता है, यह कथन वाक्यार्थज्ञानमें क्रमका निरूपण स्वयंप्रकाशका साक्षात्कार न होने में कारण .. भौतिकी दृष्टिसे आत्मज्ञान असंभव विवेकका आधार बुद्धि प्रत्यक्षादिसे अगम्य ब्रह्मका परिज्ञान केवल अतिप्रमाणसे ... उक्त-विषयमें आचार्यकी उक्ति। ... ... १६ उपदेश साहस्रीका पूर्वपक्ष और उत्तर ... ... २० अन्वय-व्यतिरेक द्वारा पद-पदार्थके ज्ञानमें आचार्यकी सम्मति वाक्यकी एकत्वप्रतिपादकतामें आचार्यकी सम्मति प्रकारान्तरसे आचार्योक्त अन्वय-व्यतिरेक प्रकृत विषयकी पुष्टिमें आचार्यकी उक्ति .... ३१ विवेकीको आत्मज्ञान होता है, इस विषय में आचार्यकी उक्तिका प्रामाण्य ज्ञानके साधन श्रुति आचार्यादि आत्मासे अभिन्न हैं, यह कथन ३७-३७ ब्रह्मज्ञान प्रपञ्चसे भिन्न है, या अभिन्न, इसका निर्णय ... पूर्वोक्त विषयमें कारण निर्देश अविद्याकी निवृत्तिके लिए वाक्यकी आवश्यकताका प्रतिपादन पूर्वोक्तविषयकी पुष्टिमें उदाहरण तुरीयपदकी प्राप्ति कब होती है, यह कथन उपदेशसाहस्रीका उदाहरण . . . ." ३८
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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