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________________ - भाषानुवादसहिता सकलपुरुषार्थसमाप्तिकारिणोऽस्याऽऽत्मावबोधस्य कुतः प्रसूतिरिति । उच्यते अमानित्वादिनिष्ठो यो यश्चाऽद्वेष्ट्रादिसाधनः । ज्ञानमुत्पद्यते तस्य न वहिर्मुखचेतसः ॥ ६८ ॥ समस्त पुरुषार्थ को समाप्त करने (मनुष्यको कृतकृत्य कर देने) बाला यह अात्मज्ञान कैसे उत्पन्न होता है, यह बात कहते हैं जो पुरुष गीतोक्त 'अमानिव आदि गुणों से युक्त' तथा 'अद्वेष्ट्टत्व आदि . साधनोंसे सम्पन्न है, उसे यह ज्ञान होता है । जो बहिर्मुव है उसको नहीं होता ॥ ६७ ॥ ___ उत्पन्न आत्मविज्ञाने किमविद्याकार्यत्वात् प्रवृत्तिवनिवृत्त्यात्मकाऽमानित्वादयो निवर्त्तन्ते उत नेति । नेति ब्रुमः । किं कारणम् ? निवृत्तिशास्त्राऽविरुद्धस्वाभाव्यात्परमात्मनो न तु नियोगवशात् । कथं तर्हि । शृणु. उत्पन्नाऽऽत्मप्रबोधस्य त्वद्वेष्ट्रत्वादयो गुणाः । अयत्नतो भवन्त्यस्य न तु साधनरूपिणः ॥ ६९ ।। शङ्का-अच्छा, आत्मज्ञानके उत्पन्न होनेपर अविद्याके निवृत्त हो जाने से उसका कार्य प्रवृत्ति जैसे नहीं होती, वैसे ही निवृत्तिरूप अमानित्वादि गुण भी निवृत्त हो जाते हैं या नहीं निवृत्त होते ? ___ समाधान नहीं निवृत्त होते, क्योंकि आत्माका स्वभाव निवृत्तिशास्त्र के अनु. कूल है, अतएव उसमें अमानित्वादि गुण विधिके बशसे नहीं रहते । तब कैसे रहते हैं ! यह सुनिए-- __ आत्मतत्वके ज्ञातामें अद्वेष्टत्वादि गुण प्रयत्नके ही बिना सिद्ध रहते हैं । साधन अवस्थामें जैसे प्रयत्नसे उनका सम्पादन करना पड़ता है, सिद्धावस्थामें वैसे नहीं ॥ ६९॥ यत एतदेवमत:इमं ग्रन्थमुपादित्सुरमानित्वादिसाधनः । यत्नतः स्यान्न दुवृत्तः प्रत्यग्धर्मानुगो ह्ययम् ।। ७० ॥ जब साधकके साधनरूपसे और सिद्ध के सिद्धरूपसे ये अमानिखादि लक्षण हैं अतएव इस ग्रन्थको ग्रहण करने की इच्छा करनेवाला पुरुष भी यत्नपूर्वक अमोनिस्वादि
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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