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________________ नैष्कर्म्यसिद्धिः चूँकि अविद्याकी प्रतीति प्रत्यक्षरूपसे अज्ञ लोगोंको हो रही है, इसी कारण अविद्याकी कल्पना की गई है। इसलिए अात्माके स्वरूपको देखकर उसके अनुगेवसे यह सिद्ध होता है कि प्रात्नामें अविद्याको सम्भावना भी किसी प्रकारसे सिद्ध नहीं हो सकती। क्योंकि, जिस अात्माका स्वाभाविक स्वरूप क्रिया और कारकसे रहित ज्ञान ही है। वहाँपर अविद्याकी सम्भावना भी किस कारण से होगी ? ॥ ११२ ॥ सोऽयमेवमनुदिताऽनस्तमितावगतिमात्रशरीर आत्मापि सन्नविचारितप्रसिद्धाऽविद्यामात्रव्यवहित एवाऽतथैवेक्ष्यते यतोऽतः-- अनुमानादयं भावाद्वयावृत्तोऽभावमाश्रितः। . ततोऽप्यस्य निवृत्तिः स्याद्वाक्यादेव बुभुत्सतः ॥११३॥ क्योंकि उत्पत्ति विनाश रहित ज्ञानमात्रस्वरूप होकर भी अात्मा अविवेकके वंशवर्ती अज्ञ जनों के कल्पनामात्रसे सिद्ध अविद्यारूपी आवरण से विपरीत-सा दीख पड़ता है। इसी कारण पहले यात्मरूपसे गृहीत देह इन्द्रियात्मक भावपदार्थोसे आमाको अनुमानकी सहायतासे पृगक समझना चाहिए कि यह आत्मा देहादिरूप नहीं है। ऐसे पृथक रूपसे ज्ञात हुआ यह आत्मा अभावरूप हुआ-सा भासमान हो रहा है। अतएवं देहादिसे पृथककृत श्रात्मामें 'मैं कौन हूँ' ऐसी उत्कट जिज्ञासावाले पुरुषको वेदान्तवाक्यसे ही ब्रह्मरूपताकी दृढ़ प्रतीति हो जानेसे अभावसे भी व्यावृत्ति अर्थात् पार्थक्य हो जाता है। तब अविद्याकी भी निवृत्ति हो जाती है ॥ ११३॥ . . - भाववदभावादपि निवृत्तिरनुमानादेव किमिति न भवतीति चेच्छृणु-- न व्यावृत्तिर्यथा भावाद्भावेनैवाऽविशेषतः'। . अभावादप्यभावत्वाद् व्यावृत्तिने तथेष्यते ॥ ११४ ॥ शङ्का-देहादि भात्र पदार्थोसे व्यावृत्ति जैसे अनुमानसे सिद्ध होती है। वैसे ही अभावसे भी ब्यावृत्ति अनुमानसे ही क्यों नहीं होती ? . समाधान-सुनिए, देहेन्द्रियादि भाव पदार्थसे श्रात्माकी व्यावृत्ति जैसे भावत्वके कारण नहीं होती, कारण दोनों भावरूप तुल्य हैं। किन्तु पूर्वोक्त चतुर्विध अन्धय व्यतिरेकरूप अनुमानसे ही होती है। ऐसे ही अभावरूपतासे भी व्याबृत्ति अनुमानसे निश्चित नहीं होती, क्योंकि अभावस्व निश्चित है। इसलिए भाव और अभावसे बिलक्षण ब्रह्मरूपत्व प्रतिपादक वाक्यसे ही अभावसे व्यावृत्ति प्रतीत होती है ॥ ११४ ॥ -अवशेषतः, ऐसा भी पाठ है। २-अन्यभावस्थात्, ऐसा भी पाठ है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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