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________________ भाषानुवादसहिता अनादृत्य श्रुतिं मोहादतो बौद्धास्तमस्विनः । निरात्मत्वमनुमानैकचक्षुषः ॥ ३४ ॥ श्रपेदिरे जो अनुमानको ही शरण माननेवाला है, वह केवल अपनी इष्ट सिद्धि से ही वञ्चित रहता है, यही नहीं । किन्तु — अनर्थको भी प्राप्त होता है। इसी बात को कहते हैंअनुमानमात्रको हो प्रमाण मानने से तमोगुण प्रधान बौद्ध लोग मोहसे श्रुतिका अनादर करके निरात्मवादी बने और शून्य हो गये ॥ ३४ ॥ न चाडनादरे कारणमस्ति यस्मात्सर्वत्रैवाऽनादरनिमित्त प्रमाणस्य प्रमाणान्तर प्रतिपन्नप्रतिपादनं वा विपरीत प्रतिपादनं वासंशयित - प्रतिपादनं वा न वा प्रतिपादनमिति न चैतेषामन्यतमदपि कारणमस्ति । यत आहमानान्तरानवष्टब्धं १०३ निर्दुःख्यात्मानमञ्जसा । 1 बोधयन्ती श्रुतिः केन न प्रमाणमितीर्यते ॥ ३५ ॥ श्रुति के अनादर में कोई कारण भी नहीं है । क्योंकि सर्वत्र प्रमाण के अनादर में यही कारण होता है कि जो बात प्रमाणान्तरसे ज्ञात हो उसको प्रकाशित करना, अथवा प्रमाणान्तरसे जो बात विरुद्ध हो उसको कहना, या जिस बातका प्रतिपादन करना है, उसको सन्दिग्धरूपसे प्रतिपादन करना, किंवा प्रतिपादन न करना, इन चार कारणों से प्रकृत विषय में कोई भी नहीं है । इसलिए कहते हैं 1 आत्मा प्रमाणान्तरसे ज्ञात नहीं है, अथवा प्रमाणान्तरसे विरुद्ध भो नहीं है । अथवा उसका श्रुतिसे सन्दिग्ध ज्ञान होता है, यह भी नहीं और श्रुति से उसका बोध ही नहीं होता, यह बात भी नहीं है तब उसको दु:खरहित, नित्य श्रानन्दरूपसे अनायास प्रतिपादन करनेवाली श्रुति प्रमाण नहीं है, ऐसी बात किसके मुख से निकलेगी ? || ३५ ॥ न च संशयितव्य 'मवगमयति । यतः -- सर्वसंशयहेतो हि निरस्ते कथमात्मनि । जायेत संशयो वाक्यादनुमानेन युष्मदि ॥ ३६ ॥ और वेदसे आत्माका बोध संशयात्मक भी नहीं होता । क्योंकि5- समस्त संशयांका कारण अहङ्कार प्रभृति अनात्मवर्ग अनुमानके द्वारा जब श्रात्मासे निरस्त हो गया है, तब वाक्य से संशय कैसे हो सकता है ? || ३६ || १ अन्यतरत्, भी पाठ है । २ संशयितं, ऐसा और 'अवगमं प्रति, ऐसा भी पाठ है 1
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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