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________________ भाषानुवादसहिता ९५ उसको सुनकर यदि किसीको ऐसी शङ्का हो कि अामा धर्मी है ये दोनों धर्म हैं। अतएव भेद तो रहा ही । तो इस शङ्काको निवृत्त करनेके लिए कहते हैं बुद्धि में धर्मधर्मिभावरूपसे भेद हो सकेगा। परन्तु आत्मामें उस प्रकारका भी भेद नहीं है। क्योंकि भेद होने में कोई प्रमाण नहीं, इसलिए कूटस्थ ज्ञान और प्रत्यक्ष रूप आत्मा है; ये दोनों धर्म हैं। श्रात्मा उनका आश्रय है। इस प्रकार भेद नहीं है ॥ १३ ॥ भेदहेत्वसम्भवं दर्शयन्नाहन कस्याश्चिदवस्थायां बोधप्रत्यक्त्वयोर्मिंदा व्यभिचारोऽथवा दृष्टो यथाऽहं तद्विदो सदा ॥ १४ ॥ भेदके कारणकी कोई सम्भावना नहीं हो सकती । इस बातको दिखलाते हुए कहते हैं कि किसी भी अवस्थामें बोध और प्रत्यक्पता, इन दोनोंका भेद नहीं दीखता । अथवा परस्पर व्यभिचार भी नहीं दृष्ट होता । जैसे-अहंकार और समीक्षाका. परस्पर एक जड़ दूसरा चेतन होनेके कारण भाष्य भासक भावरूपसे भेद है। किंवासुषुप्तिमें साक्षी विद्यमान होनेपर भी अहङ्कार नहीं है, ऐसे बोध और प्रत्यक्त्वका किसी प्रकार भेद नहीं है ॥ १४ ॥ ___ यस्मादज्ञानोपादानाया एव बुद्धे दो न आत्मनस्तस्मादेतसिद्धम् कूटस्थबोधतोऽद्वैतं साक्षात्वं प्रत्यगात्मनः । • कूटस्थबोधाद् बोद्धी धीः स्वतो हीयं विनश्वरी ॥ १५ ॥ जिस कारण अज्ञानसे उत्पन्न बुद्धिका ही भेद है, आत्माका नहीं । इस कारण यह सिद्ध हुआ कि आत्माका कूटस्थ ज्ञान ही स्वरूप है। अतएव समस्त बुद्धियोंमें परस्पर भेद होनेपर भी इसकी एकता ही है। तथा सर्वत्र प्रत्यक्षरूपता ही है। परोक्षरूपता नहीं है। किन्तु बुद्धिमें जो द्रष्टत्व प्रतीत होता है वह अात्माके ही सम्बन्धसे है। क्योंकि स्वयं बुद्धि अनित्य है ॥ १५ ॥ अथाऽधुना प्रकृतस्यैव परिणामिनः कूटस्थस्य च लक्षणमुच्यते विशेष कश्चिदाश्रित्य यत्स्वरूपं प्रतीयते । प्रत्यभिज्ञाप्रमाणेन परिणामी स देहवत् ॥ १६ ॥
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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