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________________ भाषानुवादसहिता शमादिसाधनः पश्येदात्मन्यात्मानमञ्जसा । अन्वयव्यतिरेकाभ्यां त्यक्त्वा युष्मदशेषतः ॥ ४॥ युष्मदर्थे' परित्यक्ते पूर्वोक्तैहेतुभिः श्रुतिः। वीक्षापन्नस्य कोऽस्मीति तत्त्वमित्याह सौहृदात् ॥५॥ "अन्वय व्यतिरेकसे अनात्माका परित्याग करके शान्त, दान्त, उपरत, तितिक्षु, समाधानयुक्त तथा श्रद्धायुक्त होकर आत्माको देखे ।" इस अतिमें ज्ञानका विधान नहीं किया है। किन्तु जो देखे वह शान्त, दान्त होकर देखे, इस प्रकार ज्ञानसाधनके विघा. नमें ही इस वाक्यका पर्यवसान होने के कारण तथा श्रवण आदि दृष्ट उपाय होनेपर भी नियम विधिके होने में कोई बाधा न होनेसे शास्त्रीय विशिष्ट अधिकारी मिल गया। इसलिए पूर्वाध्यायमें कथित अन्वय-व्यतिरेक हेतुओंके द्वारा अनात्म वस्तुका परित्याग करनेपर अद्वितीय आत्मवस्तु के अज्ञानसे आच्छादित होने के कारण 'मैं कौन हूँ' ऐसी जिज्ञासा जिस पुरुषको हुई है, उसको श्रुति माताके समान बड़े प्रमसे अज्ञान दूर करने के लिए 'तू वही ब्रह्म है' ऐसा उपदेश करती है ॥ ४-५ ॥ अत्राऽपि चोदयन्ति साङ्ख्याः-शरीरेन्द्रियमनोबुद्धिष्वनात्मस्वात्मेति निःसन्धिवन्धनं मिथ्याज्ञानमज्ञानं तन्निवन्धनोद्यात्मनोनेकानर्थसम्बन्धस्तस्य चाऽन्वयव्यतिरेकाभ्यामेव निरस्त्वानिर्विषयं तत्त्वमस्यांदिवाक्यं प्राप्तम् । तस्माद् वाक्यस्य चैष महिमा योऽयमात्मा. नात्मनोविभाग इति, तन्निकरणायेदमुच्यते। इसपर भी साङ्ख्यवादी लोग ऐसी शङ्का करते हैं कि-"शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धिरूप अनात्माओं में, यह आत्मा है, इस प्रकार बिलकुल भेदका तिरोधान होकर जो ऐक्यका ज्ञान है वही मिथ्याज्ञान अज्ञान है। ( इससे अतिरिक्त एक अनादि अज्ञान है, इसमें कोई प्रमाण नहीं है । ) इसी मिथ्याज्ञानरूप अज्ञानसे आत्मामें अनेक अनर्थोंकी उत्पत्ति हुई है। इस मिथ्याज्ञानकी निवृत्ति अन्वयव्यतिरेकसे ही जब सिद्ध है, फिर तत्वमस्यादि वाक्यकी क्या आवश्यकता है ? अतएव वह वाक्य निर्विषय ही प्राप्त हुआ ? इसलिए कहना चाहिए कि वाक्यका यही माहात्म्य अर्थात् प्रयोजन है कि "आत्मा और अनात्माका विभाग करना; इसके सिवाय और कुछ नहीं ?" इस अाशङ्काका निराकरण करने के लिए इस अग्रिम प्रकरणका प्रारम्भ करते हैं - १ युष्मद्यथ । २ अनेकार्थसम्बन्धः।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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