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________________ भाषानुवाद सहिता बुद्धिका उसके परिणामोंके साथ सम्बन्ध प्रतिपादन करते हैं बुद्धि परिणामिनी है, इसलिए वह कतिपय हो पदार्थोंको जान सकती है, सबको नहीं। यदि वह परिणामिनी न होती तो आत्मा के समान सर्वज्ञ हो जाती ॥ ८७ ॥ तोऽवगतेरेकत्वात् । इसलिए ज्ञानरूप चैतन्य के अद्वितीय होने के कारण । चण्डालबुद्धेर्यद् द्रष्ट तदेव ब्रह्मबुद्धि । तदुभयोज्योतिर्भास्यभेदादनेकवत् ॥ ८८ ॥ एकं चाण्डाल बुद्धिका जो द्रष्टा है वही ब्रह्मबुद्धिका भी द्रष्टा है, उन दोनों बुद्धियों का प्रकाशक एक ही है । केवल भास्य के भेदसे अनेक-सा प्रतीत होता है ॥ ८८ ॥ कस्मात् ? अवस्था देशकालादिभेदो नास्त्यनयोर्यतः । तस्माज्जगद्धियां वृत्तं ज्योतिरेकं 'सदेक्षते ॥ ८९ ॥ प्रश्न - यह कैसे ? उत्तर - अवस्था, देश और काल इत्यादि भेद चाण्डाल बुद्धि साक्षी और ब्रह्मबुद्धिके साक्षी, इन दोनोंमें नहीं है । इसलिए सारे जगत् की बुद्धियोंको देखनेवाला एक ही प्रकाशस्वरूप आत्मा है । सर्वदेहेष्वात्मैकत्वे प्रतिबुद्धपरमार्थतश्वस्यापि अप्रतिबुद्धदेहसम्बन्धादशेषदुःखसम्बन्ध इति चेत् । तन्न - ७३ शङ्का —— यदि सम्पूर्ण देहों में श्रात्मा एक ही है, तब जिसने परमार्थवस्तुभूत . आत्माका साक्षात्कार कर लिया है, उसको भी अज्ञ लोगोंके शरीरोंके साथ सम्बन्ध होनेके कारण समस्त दुःखोंका सम्बन्ध हो जाएगा ? समाधान - ऐसी शङ्का ठीक नहीं है। क्योंकि बोधात्प्रागपि दुःखित्वं नान्यदेहोत्थमस्ति नः । बोधादूर्ध्वं कुतस्तत्स्याद्यत्र स्वगतमप्यसत्२ ।। ९० ।। जब कि ज्ञानके उत्पन्न होनेसे पहले भी अन्य देहांसे उत्पन्न हुआ दुःख हमें नहीं था, तब ज्ञान उत्पन्न होने पर वह कैसे हो सकता है ? जब कि स्वयं अपने शरीर के दुःखका भी अपने में सम्बन्ध नहीं रहता ॥ ९० ॥ १ - सदीक्षते, ऐसा भी पाठ है । २– प्राक्तनमप्यसत्, है १० भी पाठ 1
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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