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________________ ( २२ ) शुद्ध शुभाशुभ इनहोंका हाल तुम्हें बतलाते हैं ॥ १ ॥ अशुभ अवस्था राग द्वेषसे नाना पाप कमाते हैं ||: ' जग माया के फंदमें फंस दुर्गति में जाते हैं ॥ २ ॥ पूजा दानशील तप करके जो नर पुन्य लहाते हैं ॥ शुभ मारग से वही जा स्वर्गों में सुख पाते हैं ॥ ३ ॥ पाप पुन्य दोनोंको त्याग जो आतम ध्यान लगाते हैं | पर परणतिको त्याग निज परणतिमें लगजाते हैं ॥ ४ ॥ शुद्ध अवस्था नाम इसीका है भगवत जितलाते हैं || कर्म घातिया नाश कर अर्हत पदवी पाते हैं ॥ ५ ॥ अपने केवल ज्ञान आर्से में सब विश्व लखाते हैं | जग जीवनको दुखी लख धर्मं उपदेश सुनाते हैं ॥ ६ ॥ निश्चय और व्यवहार रूप से शिव मारग दर्शाते हैं । बीतराग सर्वज्ञ हितकर परमातम कहलाते हैं ॥ ७ ॥ फेर अघाती कर्म - काटकर सिद्ध परम पद पाते हैं ॥ सत्त चिदानंद रूप हो फिर जगमें नहीं आतें हैं || दे ॥ अर्हत हितकारी की मूरतको जो सीस निवाते हैं ॥ न्यामत वहही जगत सुख भोग मुकत पद पाते हैं ॥ ९ ॥ ૧૮ पत्रकी अन्तिम प्रार्थना ॥ चाल - ( लावनी ) गुल मत काटे अरे बागवां गुलसे गुलको हंसनेदे ॥ पन्नालालजी पढ़ पत्रीको जिन पूजनमें ध्यान धरो ॥ - भर्म भावको छोड़कर निज आतम केल्याण करो ॥ १ ॥
SR No.010425
Book TitleMurti Mandan Prakash
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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