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________________ ( २१ ) मगर मिला है न अब तक तो मोक्ष फल मुझको ॥ सो ऐसे नामके फल चाहिये न फल मुझको || सोही जान निरर्थक श्रीफल तेरे चर्णोंके आगे चढ़ावत हूं | स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चर्णों में सीस नमावत हूं ॥ अर्घ (१०) आठों द्रव्योंको सुखकारी मैं समझता था | करेंगे कुछ मेरा उपकार मैं समझता था | मगर हुवा है न कल्याण मेरी आतमका ॥ सो सब असार हैं-गो सार मैं समझता था | सोही जान निरर्थक अर्ध तुम्हारे चर्णोंके आगे चढ़ावत हूँ !! स्वामी तू हितकारी दुख पर हारी चर्णों में सीस नमावत हूं || आशीर्वाद (दोहा (११) जल फल आदि बस्तुमें मम परणति नहीं जाय ॥ तज पर परणति न्यायमत निज परणति में आय ॥ १ ॥ बिन इच्छा शुभ भावसे जो पूजे जिनराय || पुन्य बढ़े संसार में पाप करम नश जाय ॥ २ ॥ न्यामत अर्चन को बिधी कही श्री भगवान || इस बिध जो पूजा करे हे स्वर्ग निर्वाण ॥ ३ ॥ १७ - जीवकी शुद्ध दशा और मरिहंत पदकी प्राप्ति ॥ चाल - गुल मत काटे भरे बागवां गुलसे गुलको हंसनेदे || लावनी ॥ तीन अवस्था हैं चेतनकी यूँ भगवत फरमाते हैं |
SR No.010425
Book TitleMurti Mandan Prakash
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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