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________________ डेरागाजीखान में पाठशाला डेगगाजोखान मे एक धार्मिक पाठशाला चलती थी जिसमे सन 1947 के 20 वर्ण पूर्व एक युवक पडित श्री सूर्यपालजी शास्त्री धार्मिक शिक्षा दिया करते थे। गान्त्री जी अलीगढ के रहने वाले थे। आपने डेरागाजीखान मे आकर समाज मे धार्मिक शिक्षा के अतिरिक्त युवको मे सगठन एव चारित्र निर्माण का भी महत्वपूर्ण कार्य किया। धार्मिक शिक्षा में वे परिपद् परीक्षा बोर्ड एव दिगम्बर जैन महासभा की परीक्षाये दिलाते थे। पडितजी ने यूवको का सगठन बनाया और सबमे सेवा, कर्तव्यपरायणता तथा धार्मिक जीवन पालन के भाव भरे । वे पाकिस्तान बनने तक डेरागाजीखान मे रहे तथा 20 वर्ष से भी अधिक समय तक समाज के मार्ग दर्शक बने रहे। पाकिस्तान बनने के पश्चात् आप हिसार मे रहने लगे और वहां आपका असामयिक निधन हो गया। __ इस प्रकार डेरागाजीखान पजाब प्रदेश का एक महत्वपूर्ण नगर रहा जह, दिगम्बर जैन सस्कृति पल्लवित एव पुष्पित हुई तथा सैकडो वर्षो तक सारे देश मे अपनी विशेषता बनाये रखी। 15 अगस्त सन् 1947 ___ 15 अगस्त 1947 को जैसे ही भारत स्वतत्र हुआ, स्वतन्त्रता के साथ साथ भारत का विभाजन भी हआ, पजाव का पश्चिमी भाग सिंध, वलचिस्तान एन सीमा प्रात को मिलाकर पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण हुआ। पाकिस्तान वनते ही वहाँ से हिन्दू, जैन, सिक्ख आदि गैर मुसलिमो को निकालने की योजना स्वरूप हिन्दू मुसलिम दगे शुरू हो गरे, मारकाट मचने लगी और वहाँ से गैर मुसलिम लोग जान वचाकर पाक्स्तिान से भारत जाने का प्रयत्न करने लगे, तो डेरागाजीखान के लोगो को भी जान बचाकर भारत आने के लिये विवश होना पडा, किन्तु रास्ते मे सिन्धु नदी पडने के कारण अथवा रेल मार्ग न होने के कारण सारा रास्ता असुरक्षित होने से विशेष चिन्ता का विषय बना हुआ था। ऐसे विकट सकटग्रस्त समय मे श्रीमान आसानन्दजी (सुपुत्र श्री कवरभानजी सिंगवी) एव श्री दीवानचन्दजी (सुपुत्र श्री गेलारामजी सिंगवी) ने बड़े साहस, धैर्य एव सूझबूझ के साथ वहाँ से जिन प्रतिमाओ एव हस्त लिखित शास्त्र भण्डार आदि तथा पूरी समाज को सडक मार्ग से ट्क द्वारा भारत की सीमा मे ले आये और वहां से भारत के ट्रक द्वारा सकुशल दिल्ली पहुंचे जहाँ मास मे सॉस आई तथा सब लोग अपने को सुरक्षित अनुभव करने लगे। मूर्तियो एन शास्त भण्डार को श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर दिल्ली में विराजमान करवा दिया । सव अपने पुनर्स्थापना एव व्यवसाय की ओर अग्रसर होते हुए कुछ लोग तो दिल्ली बस गये, अन्य लोग जयपुर आकर रहने लगे व अपना घरवार एन व्यवसाय जमाने में जुट गये । • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे [ 69
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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