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________________ वात्सल्य एवं एकता बनाये रखने में आपका पूर्ण सहयोग मिलता रहता था इसके लिये आप जितना भी त्याग बलिदान कर सकते करने को तैयार रहते थे । आप साधारण परिस्थितियो मे होते हुए भी अपनी बुद्धिमता से अपने व्यवसाय को इतना बढाया कि आपकी गिनती उच्च व्यवसायियो मे होने लगी । आप इतने बुद्धिमान एव न्यायप्रिय थे कि समाज में किसी भी परिवार के सदस्यों में कोई आपसी विवाद हो जाता तो वे आपसे पक्षपात रहित न्याय की अपेक्षा करते हुए आपके पास आते और आप ऐसा न्याय संगत फैसला करते कि परिवार मे शान्ति एव सौहार्द का वातावरण उत्पन्न हो जाता । 1 आप स्वाध्याय प्रेमी और कुशल वक्ता भी थे । शास्त्र सभा मे आप प्रभावशाली प्रेरणादायक प्रवचन किया करते थे । आपके श्री चादारामजी (जिनकी दुर्घटना से असामयिक मृत्यु हो गयी), श्री माधोदासजी, और श्री वलभद्र कुमार जी तीन पुत्र हैं जो आपकी तरह धर्मज्ञ, सेवाभावी एव शान्तिप्रिय हैं । आपका सन् 1947 से पूर्व ही समाधि पूर्वक स्वर्गवास हो गया । 0000 श्री पदमचन्दजी नौलखा श्री पदमचंद जी नौलखा का जन्म मुलतान मे ओसवाल दिगम्बर जैन समाज के प्राचीनतम परिवार मे हुआ था । मुलतान दिगम्बर जैन समाज के इतिहास मे आपके पूर्वजों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । आपके पिता का नाम श्री मूलचन्दजी नौलखा था । आप समाज में उत्साही एव कर्मठ कार्यकर्ता थे । समाज के किसी भी परिवार पर आई विपत्ति के समय आप हर प्रकार से काम आने वाले व्यक्ति थे । धर्मज्ञता तो आपके परिवार की परम्परागत विरासत थी । णमोकार मन पर आपकी अगाध एव दृढ श्रद्धा थी । नौलखा जी मुलतान मे जनरल मर्चेन्ट के अच्छे व्यापारी थे । उनकी मिया चन्नू मण्डी मे भी एक दुकान थी । आप मुलतान से वहा गये हुए थे कि उसी दिन रात्रि को 11वजे आपकी दुकान की लाइन मे एक पसारी की दुकान को आग लग गयी और एक के बाद दूसरी दुकान जलने लगी । आपको वहा के तहसीलदार ने दुकान खाली कर देने को कहा किन्तु आप मना करके दुकान के सामने पटरी पर बैठकर णमोकार मन्त्र का जाप करने लगे । देखते देखते आग आपकी दुकान को छोड़कर अगली दुकानो मे फैल गई । लाइन में चार दुकाने पूर्व को तथा तीन दुकानें पश्चिम की ओर की जल गयी बीच में आपकी दुकान ज्यो की त्यो बच गई जिससे मण्डी मे नौलखा जी के प्रभाव की बात बिजली की तरह फैल गई और सैकडो लोग आपके दर्शन करने आने लगे । 48 ] मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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