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________________ प्रतिलिपि समाप्त की और उन्हे लाकर मुलतान के शास्त्र भण्डार मे विराजमान किया । " इसके पश्चात् लुरिन्दामल को कथाओ को पढने की इच्छा हुई इसलिए सवत 1836 की फाल्गुण वुदी एकम को "पुण्याथव कथाकोश" की प्रतिलिपि कराई । लिपिकर्ता महात्मा गुमानीराम थे 1 इसमे प्रतिलिपिकार ने लुरिन्दामल को श्रावक उपाधि से सम्बोधित किया है । इसी वर्ष उन्होने अपने लिये प० बशीधर कृत द्रव्य संग्रह भाषा टीका की प्रतिलिपि श्वेताम्बर मोतीराम से कराई | लुरिन्दामल सब नगरो मे भ्रमण करके वापिस मुलतान आ गये और वहां अपने लिये स वत् 1843 मे परमात्म प्रकाश भाषा की प्रतिलिपि करवायी । 3 प्रशस्ति के अनुसार लुरिन्दामल ओनवाल दिगम्बर जैन थे तथा कणोडे मिघवी उनका गौत्र था । उन्हे दिगम्बर धर्म के प्रचार प्रसार की अत्यधिक चिन्ता थी तथा वे चाहते थे कि देश मे स्वाध्याय का प्रचार हो और जैन वन्धु जैन धर्म के महात्म्य को जाने । इसीलिए प्रशस्ति के अन्त मे लिखा है जिनधरम के प्रभाव वरध्मान होउ । दिन दिन विषै जैवन्त होउ || लुरिन्दामल के वंशज वर्तमान समय मे आदर्श नगर जयपुर एवं दिल्ली मे रहते है उनके पश्चात् होने वाली सन्तान का परिचय निम्न प्रकार हैं 1. संबोधसतरी - 1 - 19, नयचक्र मूल टीका 1-27, षट्पाहुड 28 - 48, पचास्तिकाय 82 तक, सवत् 1825 मिति सावन प्रथम सुदि 15 वार सुक्रवार सूरत बदर मध्ये लिखत लुरींदामल सिंघवी ओसवाल सुलतानी । 2. पुण्यास्रव कथाकोष पृष्ठ 233, सवत् 1836 का वर्षे शाके 1801 मासोत्तम मासे उत्तम मासे फाल्गुण मासे शुभे कृष्ण पक्षे पुन्यतिथौ 12 गुरुवासरे इदं पुस्तकां लिपिकृता महात्मा गुमानीराम श्रावक लुरीदामल जी आत्म पठनार्थे शुभं भवतु | 3. परमात्म प्रकाश भाषा श्री मूलताण नगर मध्ये सवत् 1843 : अठारहसई तेतालीस मासोतम मासे असाढ मासे कृष्णा पक्षे सप्तमी 7 दिने रविवारे संपूरण भया श्री जिनधरम के प्रभाव वरधमान होउ दिन दिन विषे जैवंत होउ । श्री मूलत्राण नगरवासी सा० उडीन्दामल कणोडे उसवाल वचनार्थ लिपिकृत नैनसुख । 34 ] मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के प्रालोक में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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