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________________ लुरिन्दामल इमी समय मुलतान मे श्रावक लुरिन्दामल हुए जो दिगम्बर जैन ओसवाल जाति के थे तथा सिघवी जिनका गोत्र था । लुरिन्दामल अच्छे पढे लिखे थे तथा स्वाध्याय मे अत्यधिक रुचि रखते थे। वे देश के कितने ही स्थानो मे धूम-धूम कर ग्रन्थो की प्रतिलिपि स्वयं करके अयवा दूसरो से करवाकर उनको स्वाध्याय करने के पश्चात् मुलतान के मन्दिर के शास्त्र भण्डार मे विराजमान करते रहते थे। लुरिन्दामल सर्वप्रथम आगरा गये और वहां उन्होने महाकवि भूधरदास जी के पार्श्वपुराण की प्रतिलिपि की। उस दिन सवत 1817 पोष सुदी 1 मगलवार था ।' सवत 1818 में लुरिन्दामल आगरा से सूरत बन्दरगाह गये और वहा जाकर भी आपने "तारातबोल की पत्रिका" की प्रतिलिपि की। इस पत्रिका मे मुलतान नगर का महत्वपूर्ण स्थान हैं क्योकि ठाकुर बुलाकीदास खत्री मुलतान का ही रहने वाला था । वह मुलतान से अहमदाबाद आया था और फिर 5500 मील की यात्रा की थी। और फिर उसने वापिस अहमदाबाद जाकर अपनी यात्रा समाप्त की थी। इस पत्रिका की सारी सामग्री महत्वपूर्ण है और भूगोल के कितने ही तथ्यो को प्रस्तुत करती हैं। सूरत मे लुरिन्दामल आठ वर्ष से भी अधिक रहे । सवत 1825 मे उन्होने सबोधसत्तरी, नयचक्र, षट्पाहुड एव पचास्तिकाय जैसे ग्रन्थो की - 1. पार्श्वपुराण-भूधरदास, लिखतु लुरीदानु सवाल सिंघवी वस्ति मुलतान श्री आगरे विच सं० 1817 मिती पोह सुदि 1 बार मंगलवार शुभ दिन समापत कीनां । 2. तारातंबोल की पत्रिका : संवत् 1684 मिति मंगसर सुदी 13 स्याह जहान तखत बैठा । पीछे नी बात छ श्री मुलतान को वासी ठाकर बुलाकीदास जात को खतरी ते देस देसांतर फिर के देखी न घर आवा तिण बात कही सो लिखी छ। प्रथम श्री गुजरात मध्ये - अहमदाबाद की तारातंवोल नामे नगर कोष 5550 छे श्री मुलतान को वासी ठाकुर बुलाकिदास जात को खतरी ते फिर आउ तिगे बात कही छे ते लिखी छे श्री करंज मध्ये श्री राजा अभेसिंह लिख यो कही छे ते बात विसतरी छे पिछे खरी खोटी श्री बीतराग जी जाणे सी 1818 मिति माह सुदी 6 वारस सूरत बंदर विच लुरन्दानारी। - मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे [ 33
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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