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________________ वहा की अध्यात्म शैली का भी वर्णन किया है। 'वासा' मूल रूप मे पाटको के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। नाभि राजा मरुदेव्या रानी, जिन माता जन्म्यो श्री आदिनाथ स्वामी । आदिनाथ स्वामी सब कर्म खिपायो, जुगल्या बुद्धि मेटी जिन धर्म बतायो ।१॥ जित शत्रु राजा विजया देवी रानी, जिन माता जन्म्यो श्री अजितनाथ स्वामी। अजितनाथ स्वामी इक शुद्ध रस लोधा, समरस भावे अष्ट कर्माने जीत्या ॥२॥ दृढराज राजा सुसेना देवी रानी, जिन माता जन्म्यो श्री संभवनाथ स्वामी। संभवनाथ स्वामी निज अनुभव रसिया, सुख अनन्त मे अह निश लसिया ॥३॥ स्वयम्बर राजा सिद्धार्था रानी, जिन माता जन्म्यो श्री अभिनन्दन नाथ स्वामी । अभिनन्दन नाथ स्वामी अभय पद लीधा, राग द्वेष सब दूरे कीधा ॥४॥ मेघरथ राजा मंगला देवी रानी. जिन माता जन्म्यो श्री सुमति नाथ स्वामी।। सुमतिनाथ स्वामी सुमति के दाता, भाव सु परन्यो सम्यक ज्ञाता ॥५॥ धरण राजा सुसीमा देवी रानी, जिन माता जन्म्यो श्री पद्मप्रभ स्वामी। पद्मप्रभ स्वामी जी पद्म सुभावे, सहस्त्र सागर वय सु प्रभावे ॥६॥ सप्रतिष्ठ राजा पृथिवी सेना रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री सुपारशनाथ स्वामी। सुपारशनाथ स्वामी जी अन्तरयामी, कर्म क्षिपाये पंचम गति प्रानी ॥७॥ महासेन राजा सुलक्षणा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री चन्द्र प्रभु स्वामी। चन्द्रप्रभ स्वामी जी को अमृत वानी, सुनत्या सुख पावे जे पण्डित ज्ञानी ॥८॥ राजा सुग्रीव जया रामा रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री सुविधिनाथ स्वामी। सुविधिनाथ स्वामी नमो जिनदेवा, इन्द्र नरेन्द्र करें सब सेवा ॥६॥ हढरथ राजा सुनन्दा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री शीतलनाथ स्वामी। शीतलनाथ स्वामी समोशरन विराजे, वाणी सुनत्यां मिथ्या मल भाजे ॥१०॥ विष्णु राजा नन्दा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्रेयांस नाथ स्वामी। श्रेयांसनाथ दोष अष्टदश रहिता, गुण छयालीस सु प्रभु जी सहिता ॥११॥ वासुपूज्य राजा जयावती रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री वासपूज्य स्वामी। वासुपूज्य स्वामी जी के दर्शन पावे, वैर विरोध सभी नश जावे ॥१२॥ कृत वर्म राजा जयभामा रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री विमलनाथ स्वामी। विमलनाथ स्वामी का निर्मल ध्याना, लोक अलोक प्रकाशक ज्ञाना ॥१३॥ सिंहसेन राजा जयश्यामा रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री अनन्तनाथ स्वामी । अनतनाथ स्वामी नत चतुष्टय धारी, कर्म निसकता अनन्त बल धारी॥१४॥ भानु राजा सुप्रभा देवी रानी, जिनमाता जन्म्यो श्री धर्मनाथ स्वामी । धर्मनाथ स्वामी जी धर्म बताया, वस्तु सभावे जिन रचना दिखलाया ॥१५॥ 12 ] मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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