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________________ आधार पर लिखा जावे । इसके अतिरिक्त मुल्तान समाज के बारे मे हमारे मन मे बड़ी गलत धारणा यह रही कि मुलतान समाज ओसवाल होने के नाते श्वेताम्बर से दिगम्बर धर्म वा अनुयायी हुआ होगा | इस गलत धारणा ने समाज को शेष भारत की दिगम्बर समाज से दूर रखा और अलगाव का भाव बनाये रखा । लेकिन मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता है कि मुलतान दिगम्बर जैन समाज गत 500-600 वर्षो से तो पूर्णत दिगम्बर समाज रहा और इसके पूर्व भी वह इसी रूप मे था । इसमे कोई सदेह नही है । श्वेताम्बर ओसवाल समाज के गोत्र होने पर भी वह अपने उद्भवकाल से ही दिगम्बर था और फिर दिगम्बर ही रहा इसमे कोई सदेह नही है | मुलतान समाज के इतिहास लेखन में मैने समाज के शास्त्र भडार एव मूर्ति लेखो के सहारे इतिहास के रूप मे कुछ तथ्य रखने का प्रयास किया है । मैं उसमे कितना सफल हो सका हूँ यह विद्वानो के निर्णय करने की वस्तु है । फिर भी समाज का इतिहास संक्षिप्त रूप मे ही सही प्रस्तुत हो सका है इसीकी मुझे प्रसन्नता है । अन्त मे मुलतान समाज के, अध्यक्ष श्री न्यामतरामजी एव मंत्री श्री जयकुमारजी जैन का आभारी हूँ जिन्होने इतिहास लेखन मे कितने ही तथ्यो को बतलाकर मुझे पूर्ण रूप से सहयोग दिया है । प्रस्तुत पुस्तक मे हमने समाज के परिवरो का परिचय देने का भी प्रयास किया है उसका प्रमुख उद्देश्य यही है कि आज का परिचय ही कल के इतिहास की एक कडी होगी । "इतिहास के आलोक मे" पुस्तक के लिये हमने समाज के कुछ विद्वानों के समाज से संबंधित संस्करणों को भी प्रस्तुत पुस्तक मे देने का प्रयास किया है । वे सभी इतिहास के ही अग है और भविष्य के लिये महत्वपूर्ण तथ्य हैं । मैं सभी विद्वानो का आभारी हूँ जिहोने हमारे निवेदन को स्वीकार करके अपने विचार भेजने का कष्ट किया है । डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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