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________________ लेरवक.. मुलतान आदि नगरो (वर्तमान पाकिस्तान) से आने के कारण इस समाज का नाम मलतान दि० जैन समाज पड गया है। इसमे डेरागाजी खान आदि से आये समाज का भी इतिहास जुडा है। किसी भी देश, समाज एव जाति का इतिहास उसके अतीत की घटनाओ का क्रमवध्द प्रस्तुतीकरण है । उस इतिहास के आधार पर भविष्य का सुन्दर महला खडा किया जा सकता है। जिप समाज का जितना उज्ज्वल इतिहास है वह उतना ही गर्वोन्नत होकर चल सकता है। जैनधर्म एव जैन समाज के इतिहास के अभो तक अधिकाश पृष्ट इधर उधर विखरे हुए हैं जिनके सलन एव सु सम्पादन की महती आवश्यकता है । आज समूचा जैन समाज विभिन्न सम्प्रदायो, पथो, जातियो एव उपजातियो मे बटा हुआ है इसलिये एक दूसरे को पहिचानना भी कठिन प्रतीत होता है । खडेलवाल, अग्रवाल, ओसवाल, परवाल, जैसवाल, पल्लीवाल आदि चौरासी जातियो मे विभक्त समाज आज कुछ ही जातियो तक सीमत रह गया है और शेष जातिया हो नही उनका इतिहास भो अतीत के पृष्ठो मे विलुप्त हो चुका है उनके वारे मे जानने को न तो हम उत्सुक है ओर न उनके इतिहास को सामग्री ही सहज रूप से उपलब्ध होती है। इसलिये अवशिष्ट जातियो एव प्रकाशन की यदि कोई योजना बन सके तो हमारी आगे आने वाली पीढी उससे प्रेरणा ले सकेगी। मुलतान दिगम्बर जैन समाज एक जीवित एव धर्मनिष्ठ समाज है । गत 500-600 वर्षा से जैन धर्म एव समाज को अनुप्रागिन रखने के लिये उसने अपना महान योगदान दिया है । यह समाज प्रारम्भ से हो दिगम्बर समाज के रूप मे रहा है और कभी कम कभी अधिक सख्या मे अपना अस्तित्व बनाये रखा है । सन् 1947 मे मुलतान से जयपुर मे आने के पश्चात् इस समाज ने अपने अस्तित्व को बनाया हो नहो रखा किन्तु उसको उज्ज्वल बनाने का भी प्रयास किया है । ऐसे ममाज के इतिहास को महतो आवश्यकता थी जो प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन से बहुत कुछ रूप में पूरी हो सकेगो । जब मुलतान समाज के अध्यक्ष एव मत्रो मेरे पास आये और उन्होंने महावोर कोतिस्तम्भ की वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव एव मन्दिर के रजत जयंती समारोह के आयोजन के समय मुलतान दि० जैन समाज के इतिहास को लिखने एव प्रकाशन मे सहयोग देने का प्रस्ताव रखा तो मुझे प्रसन्नता हुई और मैने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। लेकिन इतिहास लेखन के लिये सामग्री का उपलब्ध होना आवश्यक है क्योकि बिना तथ्यों के किसा जानि अयवा समाज का इतिहास लिखा भो कैसे जा सकता है। मुलमान तो अब पाकिस्तान का अग बन चुका है इसलिये मुलतान समाज का इतिहास किस
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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