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________________ संस्मरण एवं कामना गुलाब चन्द जैन प्राचार्य मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के पालोक मे श्री दि० जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर । सन् 1947 के बाद मुलतान समाज के जयपुर आ जाने पर उनका प्रतिनिधि मंडल स्व० प० चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ से मिला । उस समय में उनके पास बैठा अध्ययन कर रहा था । पण्डित साहब मुझे पढाना छोड़कर उनकी मुलतान से आने की कहानी सुनने लगे । कहानी के साथ वातावरण इतना दर्द भरा वन गया कि स्वयं पण्डित साहब गद्गद् हो गये । उन्होने मुलतान प्रतिनिधि मण्डल को अपना पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया और उनके सुखद भविष्य की कामना की । 1952 में पूज्य चुन्नीभाई ब्रह्मचारी के करकमलो से जैन दर्शन विद्यालय की स्थापना हुई । इस विद्यालय मे मुलतान जैन समाज ने तन, मन, धन से योगदान दिया और उनके छोटे बड़े बच्चो ने ही नही किन्तु बडी बडी महिलाओ ने भी जैन धर्म पढ़ने मे पर्याप्त रुचि दिखाई और 'धर्म विशारद', 'धर्म रत्न' और धर्मालकार की ऊची कक्षाओ मे अच्छे अकों से उतीर्ण हुई । आदर्शनगर मे जाकर बसने पर समाज के भाई बहिनो को जब जिनदर्शन मे कठिनाई होने लगी तो सन् 1952 में श्री मोतीराम कवरभान के प्लाट मे चैत्यालय की स्थापना की गयी । उस समय भी सभी धार्मिक क्रियाओ को सम्पन्न कराने का कार्य मैने ही किया और मुझे समाज को पास से देखने का अवसर प्राप्त हुआ । इसी तरह सन् 1954 मे जब आदर्शनगर में मन्दिर की नीव लगी तब भी मैंने ही शिलान्यास का कार्यं कराया था । इस तरह कितनी ही बार मुझे मुलतान समाज को देखने का अवसर मिला और उनकी धर्मनिष्ठा, सेवापरायणता, विनीत स्वभाव एव कार्य करने की लगन को देखकर मुझे बडा आश्चर्य होता है । आदर्शनगर मे जैन पाठशाला की स्थापना हुई । मुझे यह देखकर बडी प्रमन्नना हुई कि समाज के छोटे बडे, बालक, युवक-युवतिया सभी विद्यालय मे पढने चले आ रहे है और पढते भी है बड़े ध्यान से । मन्दिर निर्माण के पश्चात् इसकी वेदी प्रतिष्ठा के अवसर पर बच्चो ने मैनासुन्दरी नाटक दिखाया था । बच्चो ने वडे कलापूर्ण ढंग से नाटक को इतनी सुन्दरता से प्रदर्शित किया कि उपस्थित समाज खुशी से गद्गद् हो गया । इस प्रकार गत 30 वर्षो से मै मुलतान समाज के नपर्क में हूँ और मुझे यह जानकर प्रसन्नता होती है कि इस समाज मे कितना धार्मिक वात्सल्य एवं कर्तव्य के प्रति निष्ठा है जो हम सबके लिये अनुकरणीय है । गुलावचंद जैन प्राचार्य { 59
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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