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________________ श्री मुलतान दि० जैन समाज मारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वानों की दृष्टि में मुलतान का आदर्श जैन समाज प० कैलाशचन्द्र शास्त्री सिद्धान्ताचार्य । वाराणसी सन् 1942 मे मुझे दस लक्षण पर्व के लिये मुलतान की दिगम्बर जैन 'माज का निमन्त्रण मिला और मैंने उसे स्वीकार तो कर लिया, किन्तु हृदय में यह शका बनी रही कि सुदुर पजाब प्रदेश मे न जाने जैन समाज का रहन-सहन, खान-पान कैसा होगा और व्रत्तादि कैसे पाले जा सकेगे। किन्तु वहा पहच कर मेरी सभी शकाये दूर हो गई और जैन आखिर जैन ही है वे कही भी रहे किन्तु जैनत्व की सुवास नही जा सकती। यह बतला देना भी उचित होगा कि मुलतान मे दिगम्बर जैन प्रारम्भ से ही अधिकाश ओसवाल दि० जैन थे। कुछ बाद मे भी श्वेताम्बर से दिगम्बर बने थे। में उस समय के बुजुर्गों के नाम भूल गया है कि किस तरह उन्होने परीक्षा करके सत्यमार्ग का पहचान कर आत्महित की दृष्टि से दिगम्बर बने थे। इसके लिए दोनो सम्प्रदायों में शास्त्रार्थ भी हुआ था। दिगम्बरो की ओर से न्याय दिवाकर पण्डित पन्नालालजी वुलार्य गये थे। जव मै मुलतान गया उस समय मुलतान डेरागाजीखान मे अधिकाश ओसवाल दि० जैन ही थे। कुछ अग्रवाल एव अन्य जाति के परिवार भी रहते थे । मेरी याददास्त के अनुसार डेरागाजीखान मे 40 घर और मुलतान मे 60 घर ओसवाल दिगम्बर जैनो के थे। मन्दिर मे पूजन, भजन, शास्त्रसभा बडे ठाट से होती थी। रात्रि को वालक अकलक निषकलक आदि के कई ड्रामे करते थे। मुलतान की जैन समाज ने प० अजितकुमार जी को अपने यहां बुलाकर वसा लिया था और प्रेस खुलवा दिया था। आर्य समाज मे शास्त्रार्थ करने मे सवको वडा रस था। रात्रि के व्याख्यानो मे भी ईश्वर कर्तव्य खण्डन आदि विषय रखे जाते थे । मन्दिर बड़ा विशाल था। एक दिन मुझसे बातचीत मे वहा के बुजुर्ग बोले-पण्डितजी हमारी आम्नाय विगडती जाती है, लडके बच्चे बाजार मे खाने लगे हैं। पहले हमारे यहा दूज, पचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी को हरी शाक सब्जी नहीं खाई जाती थी। अब तो केवल अष्टमी चतुर्दशी को नही खाते । मुझे यह सव सुनकर वडा अचरज हुआ। मैने कहा आपके यहा अभी भी धर्म है। हमारे यहा तो अष्टमी, चतुर्दशी का विचार ही समाप्त है। वे मेरा मुह देखने लगे। 88 ] • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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