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________________ मन्दिर मे चहल-पहल शुरू हुई तथा राजापार्क, तिलव नगर, जनता कालोनी आदि आसपास रहने वाले धर्म वन्धु भी आकर दर्शन पूजन एव स्वाध्याय आदि करने लगे। प्रतिष्ठा के समय अच्छा अर्थ-सग्रह होने से एव उसी समय व्यक्तिगत रूप स विभिन्न निर्माण कायो की स्वीकृतियाँ मिल जाने से निर्माण कार्य भी तेजी से आगे बढा । __सवसे पहिले मन्दिर मे 60x44 फुट के विशाल सभाभवन को पूरा किया गया, जिसका फर्श श्रीमान शिवनाथमलजी कोठारी दिल्ली वालो ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती गणेशीवाई की स्मृति मे वनवाया। सभाभवन मे प्रवेश क ते ही सामने 6x4 फुट काच मे उत्कीर्ण किया हुआ विशाल एव मनोज्ञ भगवान ऋषभदेव के चित्र के दर्शन होते हैं । इस वेदी को चारो ओर से रगविरगे काच के छोटे-छोटे टुकडो से कलात्मक ढग से सुसज्जित किया गया है, जिसकी शोभा विजली की आन्तरिक रोशनी से देखते ही बनती है, ऐसा अद्भुत चित्र शायद ही अन्यत्र कही देखने को मिले। यह अनुपम दृश्य श्रीमान ताराचन्दजी सुपुत्र श्री भोलारामजी सिंगवी के आर्थिक सहयोग से बना है। इसी सभा भवन मे पूर्व दिशा की ओर शास्त्र भण्डार रखने के लिये विशेष व्यवस्था की गई है, जहा हस्तलिखित ग्रन्थो को सुव्यवस्थित ढग से वेप्ठन आदि लगाकर तथा नामाकित करके रखवाये गये हैं। पश्चिम की ओर मुद्रित ग्रन्थो को विशेष रूप से रखने की व्यवस्था की गई है, जिनको जिल्द आदि सवार कर क्रमानुसार सुनियोजित ढग से रखा गया है जिससे कि स्वाध्याय प्रेमियो को वाछित ग्रन्थ शीघ्रता एव सुविधा पूर्वक दिया जा सके । सभा भवन की उत्तीरी दीवार पर देव-पूजन के महातम्य का द्योतक दृश्य जिसके साथ भगवान महावीर के समवसरण का चित्र दिखाया गया है, यह भावभीनी रचना काच के रगविरगे टुकडो से निर्मित है, जिसमे कला, सौदर्य एव भक्ति के महातम्य का दिग्दर्शन होता है । यह चित्र श्री किशोरीलालजी सुपुत्र श्री ताराचन्दजी ननगाणी द्वारा निर्मित कराया गया है। सभा भवन मे गैलरी के चारो ओर पुस्तकाकार बने पन्नो पर कलात्मक ढग से रंगबिरगी स्याही मे अति शिक्षा-प्रद ससार, देह एव भोगो से वैराग्य दिलाने वाले, छदो में हृदय स्पर्गी वाक्य लिखे हैं। सभा भवन के ऊपर दक्षिण की ओर उत्तर देखता हआ वेदी मण्डप है, जिसमें अति सुन्दर एव विशाल वेदी बनी हुई है। इस वेदी मे मुलतान एव डेरागाजीखान से लाई गई लगभग 101 मतिया विराजमान है, तथा समय-समय पर राजस्थान मे हई पचकल्याणक प्रतिष्ठाओ मे प्रतिष्ठित कराई गई कई प्रतिमाएं भी लाकर विराजमान की गई हैं । स्वाध्याय मन्दिर ___ ऊपर उत्तर की ओर 20x40 फुट का अति सुन्दर वारादरी के समान स्वाध्याय 741 • मुलतान दिगम्बर जैन समाज-इतिहास के आलोक मे
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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