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________________ ७२४ - मोक्षशास्त्र के ज्ञान स्वभावकी अखण्ड रुचिश्रद्धा वर्तती है। इसीलिये उसके हमेशा धर्मध्यान रहता है, मात्र पुरुषार्थकी कमजोरीसे किसी समय अशुभभावरूप प्रार्तध्यान भी होता है, किन्तु वह मंद होता है ॥ ३४ ॥ अब रौद्रध्यानके भेद और स्वामी बतलाते हैं हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेश विरतयोः॥३५॥ अर्थ-[ हिंसानतस्तेय विषय संरक्षणेभ्यः] हिंसा, असत्य, चोरो, और विषय संरक्षणके भावसे उत्पन्न हुआ ध्यान [ रौद्रम् ] रौद्रध्यान है; यह ध्यान [ अविरतदेशविरतयोः ] अविरत और देशविरत ( पहलेसे पाँच ) गुणस्थानोंमें होता है। टीका जो ध्यान क्रूर परिणामोंसे होता है वह रौद्रध्यान है । निमित्तके भेदकी अपेक्षासे रौद्रध्यानके ४ भेद होते हैं वे निम्नप्रकार हैं: १-हिंसानंदी-हिसामें आनन्द मानकर उसके साधन मिलानेमें तल्लीन रहना सो हिंसानंदी है। २-मृपानंदी-झूठ बोलनेमे आनन्द मान उसका चितवन करना। ३-चौर्यानंदी-चोरीमें आनन्द मानकर उसका विचार करना। ४-परिग्रहानंदी-परिग्रहकी रक्षाकी चिंतामें तल्लीन हो जाना। अव धर्मध्यानके भेद बताते हैं आज्ञाऽपायविपाकसंस्थानविचयाय धर्म्यम् ॥३६॥ अर्थ-[मातापायविपाकसंस्थानविचयाय] आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचयके लिये चितवन करना सो [ धर्म्यम् ] धर्मध्यान है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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