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________________ ७२२ मोक्षशाखा टीका पहले दो ध्यान अर्थात् आर्तध्यान और रौद्रध्यान संसारके कारण हैं और निश्वय धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान मोक्षके कारण हैं। प्रश्न-यह तो सूत्रमें कहा है कि अन्तिम दो ध्यान मोक्षके कारण है, कितु ऐसा अर्थ सूत्रमेंसे किसतरह निकाला कि पहले दो ध्यान संसार के कारण है ? उत्तर-मोक्ष और संसार इन दो के अतिरिक्त और कोई साधने योग्य पदार्थ नहीं । इस जगतमें दो ही मार्ग हैं-मोक्षमार्ग और संसारमागं । इन दो के अतिरिक्त तीसरा कोई साधनीय पदार्थ नही है, अतएव यह सूत्र यह भी बतलाता है कि धर्मध्यान और शुक्लध्यानके अलावा आर्त और रौद्रध्यान संसारके कारण हैं ॥ २६ ॥ ____ आर्चध्यानके चार भेद हैं, अब उनका वर्णन अनुक्रम से चार सूत्रों द्वारा करते हैं प्रार्तममनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वा हारः॥३०॥ अर्थ-[अमनोजस्य संप्रयोगे ] अनिष्ट पदार्थका संयोग होने पर [ तद्विप्रयोगाय ] उसके दूर करनेके लिये [ स्मृति समन्वाहारः ] बारंवार विचार करना सो [पार्तम् ] अनिष्ट संयोगज नामका आर्तध्यान है ॥ ३० ॥ विपरीतं मनोज्ञस्य ॥ ३१॥ __ अर्थ-[ मनोजस्य ] मनोज्ञ पदार्थ संबंधी [ विपरीत ] उपरोक्त सूत्रमे कहे हुयेसे विपरीत अर्थात् इष्ट पदार्थका वियोग होनेपर उसके संयोगके लिये वारंवार विचार करना सो 'इष्ट वियोगज' नामका आत्तध्यान है ॥ ३१॥
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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