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________________ ७०६ मोक्षशास्त्र मोक्ष प्राप्तिके लिये चारित्र साक्षात् हेतु है-ऐसा ज्ञान करानेके लिये इस सूत्र में वह अलग बताया है। ८. व्रत और चारित्रमें अन्तर मानव अधिकारमें ( सातवें अध्यायके प्रथम सूत्र में ) हिसा, झूठ, चोरी आदिके त्यागसे अहिंसा, सत्य, अचौर्य आदि क्रियामें शुभप्रवृत्ति है इसीलिये वहाँ अवतोंकी तरह व्रतोंमें भी कर्मका प्रवाह चलता है, किन्तु उन व्रतोंसे कर्मोकी निवृत्ति नही होती। इसी अपेक्षाको लक्ष्यमें रखकर, गुप्ति आदिको संवरका परिवार कहा है । आत्माके स्वरूपमें जितनी अमेदता होती है उतना संवर है शुभाशुभ भावका त्याग निश्चय व्रत अथवा वीतराग चारित्र है । जो शुभभावरूप व्रत है वह व्यवहार चारित्ररूप राग है और वह संवरका कारण नहीं है। (देखो सर्वार्थसिद्धि अध्याय ७ पृष्ठ ५ से ७) ॥१८॥ दूसरे सूत्रमें कहे गये संवरके ६ कारणोंका वर्णन पूर्ण हुआ । इस तरह संवर तत्त्वका वर्णन पूर्ण हुआ। अब निर्जरा तत्त्वका वर्णन करते हैं निर्जरा तत्त्वका वर्णन भूमिका १-पहले अठारह सूत्रोंमें संवरतत्त्वका वर्णन किया । अब उन्नी सर्वे सूत्रसे निर्जरा तत्त्वका वर्णन प्रारम्भ होता है। जिसके संवर हो उसके निर्जरा हो । प्रथम संवर तो सम्यग्दर्शन है, इसीलिये जो जीव सम्यग्दर्शन प्रगट करे उसीके ही सवर-निर्जरा हो सकती है। मिथ्यादृष्टिके संवर निर्जरा नहीं होती। २-यहां निर्जरा तत्त्वका वर्णन करना है और निर्जराका कारण तप है ( देखो अध्याय ६ सूत्र ३ ) इसीलिये तपका और उसके भेदोंका वर्णन किया है। तपको व्याख्या १६ वे सूत्रको टीका में दी है और ध्यानको व्याख्या २७ वें सूत्र में दी गई है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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