SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 780
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०० मोक्षशास्त्र णोकम्मतित्थयरे कम्मं च णयरे मानसो अमरे । रपसु कवलाहारो पंखी उज्जो इगि लेऊ ॥ अर्थ - १ नौकर्म आहार, २ कर्माहार, ३ कवलाहार, ४ लेपाहार, ५ प्रजाहार, और ६ मनोआहार, इसप्रकार क्रमसे ६ प्रकारका प्रहार है, उनमें नोकर्म आहार तीर्थंकरके, कर्माहार नारकीके, मनोनाहार देवके, कवलाहार मनुष्य तथा पशुके, भोजाहार पक्षीके अण्डोंके और वृक्षके लेपाहार होता है । इससे सिद्ध होता है कि केवलीके कवलाहार नहीं होता । प्रश्न - मुनिकी अपेक्षासे घट्ट गुणस्थानसे लेकर तेरहवे गुणस्थान तककी परीषहोका कथन इस अध्यायके १३ से १६ तकके सूत्रों में किया है यह व्यवहारनयकी अपेक्षासे या निश्चयनयकी अपेक्षासे ? उत्तर——यह कथन व्यवहारनयकी अपेक्षासे है, क्योंकि यह जीव परवस्तु के साथका सम्बन्ध बतलाता है, यह कथन निश्चयकी अपेक्षासे नहीं है । प्रश्न -- यदि व्यवहारनयकी मुख्यता सहित कथन हो उसे मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३६६ मे योंजाननेके लिए कहा है कि 'ऐसा नही किन्तु निमित्तादिककी अपेक्षासे यह उपचार किया है' तो ऊपर कहे गये १३ से १६ तकके कथनमें कैसे लागू होता है ? उतर - उन सूत्रोंमे जीवके जिन परीषहोंका वर्णन किया है वह व्यवहारसे है, इसका सत्यार्थ ऐसा है कि जीव जीवमय है परोषहमय नही । जितने दरजेमे जीवमे परीषह वेदन हो उतने अंशमे सूत्र १३ से १६ में कहे गये कर्मका उदय निमित्त कहलाता है किन्तु निमित्तने जीवको कुछ नहीं किया । प्रश्न- -१३ से १६ तकके सूत्रोंमें परीषहों के वारे में जिस कर्मका उदय कहा है उसके और सूत्र १७ में परीपहोंकी जो एक साथ संख्या कही
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy