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________________ अध्याय ७ सूत्र ३६ ४. दातृविशेष दातारमें निम्नलिखित सात गुण होने चाहिये(१) ऐहिक फल अनपेक्षा-सासारिक लाभकी इच्छा न होना । (२) शांति-दान देते समय क्रोधरहित शान्त परिणाम होना। (३) मुदित-दान देते समय प्रसन्नता होनी । (४) निष्कपटता-मायाचार छल कपटसे रहित होना। (५) अनुसूयत्व-ईर्ष्यारहित होना।। (६) अविषादित्व-विषाद ( खेद ) रहित होना । (७) निरहंकारित्व-अभिमान रहित होना । दातारमें रहे हुये इन गुणोंकी हीनाधिकताके अनुसार उसके दान का फल होता है। ५. पात्रविशेष सत्पात्र तीन तरहके हैं(२) उत्तमपात्र-सम्यक्चारित्रवान् मुनि । (२) मध्यम पात्र-व्रतधारी सम्यक्दृष्टि । (३) जघन्य पात्र-अविरति सम्यग्दृष्टि । ये तीनों सम्यग्दृष्टि होनेसे सुपात्र हैं। जो जीव बिना सम्यग्दर्शनके बाह्य व्रत सहित हो वह कुपात्र है और जो सम्यग्दर्शनसे रहित तथा वाह्यव्रत चारित्रसे भी रहित हों वे जीव अपात्र हैं। ६. दान सम्बन्धी जानने योग्य विशेष बातें (१) अपात्र जीवोंको दुःखसे पीड़ित देखकर उनपर दयाभावके द्वारा उनके दुःख दूर करनेकी भावना गृहस्थ अवश्य करे, किन्तु उनके प्रति भक्तिभाव न करे; क्योंकि ऐसोके प्रति भक्तिभाव करना सो उनके पापकी
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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