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________________ ६०२ मोक्षशाख (२) उच्चस्थान-उनको ऊँचे आसन पर विठाना । (३) पादोदक-गरम किए हुए शुद्ध जलसे उनके चरण धोना । (४) अर्चन-उनकी भक्ति पूजा करना। (५) प्रणाम-उन्हें नमस्कार करना । (६-७-८) मनशुद्धि, वचनशुद्धि, और कायशुद्धि । (९) ऐषणाशुद्धि-आहारको शुद्धि । ये नव क्रियाएं क्रमसे होनी चाहिए, यदि ऐसा क्रम न हो तो मुनि पाहार नहीं ले सकते। प्रश्न-इसप्रकार नवधाभक्ति पूर्वक स्त्री मुनिको आहार दे या नहीं? उत्तर-हाँ, स्त्रीका किया हुआ और स्त्रीके हाथसे भी साधु आहार लेते है। यह बात प्रसिद्ध है कि जब भगवान महावीर छद्मस्थ मुनि थे तब चंदनबालाने नवधाभक्तिपूर्वक उनको आहार दिया था। मुनिको 'तिष्ठ ! तिष्ठ ! तिष्ठ !' ( यहाँ विराजो ) इसप्रकार अति पूज्यभावसे कहना तथा अन्य श्रावकादिक योग्य पात्र जीवोंको उनके पदके अनुसार प्रादरके वचन कहना सो संग्रह है। जिसके हृदयमें नवधाभक्ति नही उसके यहां मुनि आहार करते ही नहीं, और अन्य धर्मात्मा पात्र जीव भी बिना आदरके, लोभी होकर धर्मका निरादर कराकर कभी भोजनादिक ग्रहण नही करते। वीतरागधर्मकी दृढ़तासहित, दीनतारहित परम सन्तोष धारण करना सो जैनत्व है। ____३.द्रव्यविशेष पात्रदानकी अपेक्षासे देने योग्य पदार्थ चार तरहके हैं-(१) आहार (२) औषध (३) उपकरण ( पीछी, कमण्डल, शास्त्र आदि ) और (४) आवास । ये पदार्थ ऐसे होने चाहिये कि तप, स्वाध्यायादि धर्मकार्यमे वृद्धि के कारण हों।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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