SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 672
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६२ मोक्षशास्त्र अनाचार हैं अर्थात् वह तो मिथ्यादृष्टि ही है । ८--श्रात्माका स्वरूप समझने के लिये शंका करके जो प्रश्न किया जावे वह शंका नहीं किन्तु आशंका है; प्रतिचारोंमें जो शंका दोष कहा है उसमें इसका समावेश नहीं होता । प्रशंसा और संस्तवमें इतना भेद है कि प्रशंसा मनके द्वारा होती है और संस्तव वचन द्वारा होता है ॥ २३ ॥ अब पांच व्रत और सात शीलों के अतिचार कहते हैं व्रतशीलेषु पंच पंच यथाक्रमम् ॥ २४ ॥ अर्थ - [ व्रतशीलेषु ] व्रत और शीलोंमें भी [ यथाक्रमं ] अनुक्रमसे प्रत्येक में [ पंच पंच ] पाँच पाँच अतिचार हैं । नोट- व्रत कहनेसे अहिंसादि पाँच अणुव्रत समझना और शील कहने से तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये सात शोल समझना । इन प्रत्येकके पांच प्रतिचारोंका वर्णन अब आगेके सूत्रोंमें कहते हैं ॥ २४ ॥ अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार बंधवधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधाः ||२५|| 7 श्रथं - [ बंधवधच्छेदातिभारारोपणाम्न्नपाननिंरोधाः ] बन्ध, वध, छेद, अधिक भार लादना और अन्नपानका निरोध करना-ये पाँच अहिंसाव्रतके अतिचार हैं । टीका बंध - प्राणियोंको इच्छित स्थानमें जाने से रोकने के लिये रस्सी इत्यादिसे बांधना । वध प्राणियोंको लकड़ी इत्यादिसे मारना । छेद - प्राणियोंके नाक, कान आदि अंग छेदना । अतिभारारोपण— प्राणीको शक्तिसे अधिक भार लादना ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy