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________________ ५८७ अध्याय ७ सूत्र २१ टीका १-पहले १३ से १७ तकके सूत्रोमें हिंसादि पांच पापोंका जो वर्णन किया है उनका एकदेश त्याग करना सो पांच अणुव्रत हैं । जो अणुव्रतोंको पुष्ट करे सो गुणवत है और जिससे मुनिव्रत पालन करनेका अभ्यास हो वह शिक्षाव्रत है। २-तीन गुणनत और चार शिक्षानतोंका स्वरूप निम्नप्रकार है दिग्व्रत-मरण पर्यंत सूक्ष्म पापोंकी भी निवृत्तिके लिए दशो दिशानोंमें माने जानेकी मर्यादा करना सो दिग्वत है। देशव्रत-जीवन पर्यन्तको ली गई दिग्वतकी मर्यादामेंसे भी घडी घण्टा, मास, वर्ष आदि समय तक अमुक गली आदि जाने आनेकी मर्यादा करना सो देशवत है। अनर्थदंडवत--प्रयोजन रहित पापकी बढानेवाली क्रियानोका परित्याग करना सो अनर्थदंडविरतिव्रत है । अनर्थदडके पांच भेद हैं(१) पापोपदेश ( हिंसादि पापारम्भका उपदेश करना ), (२) हिंसादान (तलवार प्रादि हिसाके उपकरण देना ); (३) अपध्यान ( दूसरेका बुरा विचारना ), (४) दुःश्रुति ( राग-द्वेषके बढानेवाले खोटे शास्त्रोका सुनना ) और (५) प्रमादचर्या (विना प्रयोजन जहाँ तहाँ जाना, वृक्षादिकका छेदना, पृथ्वी खोदना, जल बखेरना, अग्नि जलाना वगैरह पाप कार्य) शिकार, जय, पराजय, युद्ध, परस्त्रीगमन, चोरी इत्यादिका किसी भी समय चितवन नही करना, क्योकि इन बुरे ध्यानोका फल पाप ही है। -ये तीन गुणवत हैं। सामायिक-मन, वचन, कायके द्वारा कृत, कारित, अनुमोदनासे हिंसादि पांच पापोका त्याग करना सो सामायिक है। यह सामायिक शुभभावरूप है । (सामायिक चारित्रका स्वरूप नवमें अध्यायमे दिया जायगा) प्रोषधोपवास-अष्टमी और चतुर्दशीके पहले और पीछेके दिनों में एकाशनपूर्वक अष्टमी और चतुर्दशीको उपवास आदि करके, एकान्तवासमें
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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