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________________ मोक्षशास्त्र व्रतीके भेद अगार्यनगारश्च ॥१६॥ अर्थ-[प्रगारी] अगारी अर्थात् सागार (गृहस्थ) [अनगारः च] और अनगारा (गृहत्यागी भावमुनि) इसप्रकार व्रतीके दो भेद हैं । नोट-निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक महाव्रतोंको पालनेवाले मुनि अनगारी कहलाते हैं और देशव्रतको पालनेवाले श्रावक सागारी कहलाते हैं ॥१९॥ सागारका लक्षण अणुव्रतोऽगारी ॥२०॥ अर्थ-[ अणुव्रतः ] अणुव्रत अर्थात् एकदेशवत पालनेवाले सम्यग्दृष्टि जीव [ अगारी ] सागार कहे जाते हैं । टीका यहाँसे अणुव्रतधारियोंका विशेष वर्णन प्रारम्भ होता है और इस अध्यायके समाप्त होने तक यही वर्णन है । अणुनतके पांच भेद हैं-(१) अहिंसाणुव्रत (२) सत्याणुव्रत (३) अचौर्याणुव्रत (४) ब्रह्मचर्याणुव्रत और (५) परिग्रहपरिमाणअणुव्रत ॥२०॥ अब अणुव्रतके सहायक सात शीलवत कहते हैं दिग्देशानर्थदंडविरतिसामायिकपोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागवतसंपन्नश्च ॥२१॥ अर्थ-[च ] और फिर वे व्रत [ दिग्देशानर्थदंडविरति सामायिक प्रोषधोपवासोपभोगपरिभोगपरिमाणातिथिसंविभागवतसम्पन्नः] दिग्वत, देशव्रत तथा अनर्थदंडवत ये तीन गुणव्रत और सामायिक, प्रोषधोपवास, उपभोगपरिभोग परिमाण ( मर्यादा ) तथा अतिथिसंविभागवत ये चार शिक्षाप्रत सहित होते हैं अर्थात् व्रतधारी श्रावक पांच अणुव्रत, तीन गुणमत और चार शिक्षाबूत इन वारह व्रतों सहित होता है।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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